ई-पुस्तकें >> भक्तियोग भक्तियोगस्वामी विवेकानन्द
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स्वामीजी के भक्तियोग पर व्याख्यान
मन्त्र
इन अवतारी महापुरुषों के वर्णन के बाद अब हम सिद्ध गुरुओं की चर्चा करेंगे। उन्हें मन्त्र द्वारा शिष्य में आध्यात्मिक ज्ञान का बीजारोपण करना पड़ता है। ये मन्त्र क्या हैं? भारतीय दर्शन के अनुसार नाम और रूप ही इस जगत् की अभिव्यक्ति के कारण हैं। मानवी अन्तर्जगत् में एक भी ऐसी चित्तवृत्ति नहीं रह सकती, जो नाम-रूपात्मक न हो। यदि यह सत्य हो कि प्रकृति सर्वत्र एक ही नियम से निर्मित है, तो फिर इस नामरूपात्मकता को समस्त ब्रह्माण्ड का नियम कहना होगा। ''जैसे मिट्टी के एक पिण्ड को जान लेने से मिट्टी की सब चीजों का ज्ञान हो जाता है''
यथा सौम्य एकेन मृत्पिण्डेन सर्व मृन्मयं विज्ञात स्यात् –इत्यादि। - छान्दोग्यउपनिषद 6/14
उसी प्रकार इस देहपिण्ड को जान लेने से समस्त विश्वब्रह्माण्ड का ज्ञान हो जाता है। रूप, वस्तु का मानो छिलका है और नाम या भाव, भीतर का गूदा। शरीर है रूप और मन या अन्तःकरण है नाम; और वाक्शक्तियुक्त समस्त प्राणियों में इस नाम के साथ उसके वाचक शब्दों का अभेद्य योग रहता है। मनुष्य के भीतर व्यष्टि- महत् या चित्त में विचार-तरंगें पहले शब्द के रूप में उठती हैं और फिर बाद में वे तदपेक्षा स्थूलतर रूप धारण कर लेती हैं।
बृहत् ब्रह्माण्ड में भी ब्रह्मा, हिरण्यगर्भ या समष्टि-महत् ने पहले अपने को नाम के, और फिर बाद में रूप के आकार में अर्थात् इस परिदृश्यमान-जगत् के आकार में अभिव्यक्त किया। यह सारा व्यक्त इन्द्रियग्राह्य जगत् रूप है, और इसके पीछे है अनन्त अव्यक्त स्फोट का अर्थ - समस्त जगत् की अभिव्यक्ति का कारण शब्द-ब्रह्म। समस्त नामों अर्थात् भावों का नित्यसमवायी उपादानस्वरूप यह नित्य स्फोट ही वह शक्ति है, जिससे भगवान इस विश्व की सृष्टि करते हैं। यही नहीं, बल्कि भगवान पहले स्फोट-रूप में परिणत् हो जाते हैं और तत्पश्चात् अपने को उससे भी स्थूल इस इन्द्रियग्राह्य जगत् के रूप में परिणत कर लेते हैं।
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