ई-पुस्तकें >> भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्आदि शंकराचार्य
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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका
नलिनीदलगतजलमतितरलम्,
तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्।
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं,
लोकं शोकहतं च समस्तम् ॥4॥
(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)
कमल की पंखुड़ियों पर क्रीड़ा करते हुये जल बिन्दु का अस्तित्व जिस तरह अत्यंत अनिशिचित रहता है उसी तरह यह (मनुष्य का) जीवन भी सर्वथा अस्थिर है। इसे भलीभांति समझ लो कि वह सारा विश्व ही रोग और अभिमान से ग्रस्त है और कष्ट से आक्रान्त है॥4॥
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)
nnaliniidalagata jalamatitaralam
tadvajjiivitamatishayachapalam
viddhi vyaadhyabhimaanagrastam
lokam shokahatam cha samastam ॥4॥
Life is as ephemeral as water drops on a lotus leaf . Be aware that the whole world is troubled by disease, ego and grief. ॥4॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)
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