ई-पुस्तकें >> भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्आदि शंकराचार्य
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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका
योगरतो वा भोगरतो वा,
संगरतो वा संगवीहिनः।
यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं,
नन्दति नन्दति नन्दत्येव ॥1९॥
(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)
योग में लीन रहे या भोग-विलास में, साथियों में प्रसन्न रहे या भीड़ से दूर एकान्त में निवास करे, जिसका मन ब्रह्म में लीन है वही प्रसन्न है वही वास्तव में सुखी रहता है॥1९॥
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)
yogarato vaabhogaratovaa
sangarato vaa sangaviihinah
yasya brahmani ramate chittam
nandati nandati nandatyeva ॥19॥
One may like meditative practice or worldly pleasures , may be attached or detached. But only the one fixing his mind on God lovingly enjoys bliss, enjoys bliss, enjoys bliss. ॥19॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)
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