ई-पुस्तकें >> भगवान श्रीकृष्ण की वाणी भगवान श्रीकृष्ण की वाणीस्वामी ब्रह्मस्थानन्द
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भगवान श्रीकृष्ण के वचन
नारद के द्वारा
जहाँ तुम तक पहुँचने में मन और इन्द्रियाँ
विफलप्रयास हो जाती हैं, वहाँ,
हे प्रभु, तुम अपनी दैवी महिमा से प्रकाशित हो;
तुम अनाम और अरूप हो;
तुम्हीं जीवन और चेतना हो;
समस्त कारणों के कारण हो;
तुम हमारी रक्षा करो और मार्गदर्शन दो।
सर्वव्यापी आकाश के समान तुम सर्वत्र
तथा सभी में विद्यमान हो,
फिर भी हम तुम्हें नहीं जानते।
हम तुम्हें प्रणाम करते हैं।
परमानन्द ही तुम्हारा रूप है।
तुम्हारी चेतना के ही प्रकाश से -
जैसे अग्नि से दग्ध लोहा उत्तप्त हो जाता है
वैसे ही इन्द्रिय, मन और बुद्धि से परे होकर
व्यक्ति तुम्हें जान लेता है।
हमारा हृदय तुममें ही अभिनिविष्ट हो।
मुचकुन्द के द्वारा
हे प्रभु, तुम्हारी माया से मोहित होकर
लोग तुम्हें नहीं जानते,
वे तुम्हारा भजन भी नहीं करते
और संसार में फँसे रहते हैं
जो सारे दुःखों और कष्टों का स्रोत है।''
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