ई-पुस्तकें >> भगवान श्रीकृष्ण की वाणी भगवान श्रीकृष्ण की वाणीस्वामी ब्रह्मस्थानन्द
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भगवान श्रीकृष्ण के वचन
तीन गुण
¤ हे महाबाहो! प्रकृति से उत्पन्न होनेवाले सत्व, रज और तम ये तीनों गुण अविनाशी जीवात्मा को शरीर में आबद्ध कर देते हैं।
¤ हे अनघ, इन तीनों गुणों में सत्वगुण निर्मल होने के कारण प्रकाश करनेवाला और निर्विकार है। यह जीवात्मा को सुख की आसक्ति और ज्ञान की आसक्ति से बाँधता है।
¤ हे कौन्तेय, रागरूप रजोगुण को तू कामना और आसक्ति से उत्पन्न जान। वह इस जीवात्मा को कर्मो की आसक्ति से बाँधता है।
¤ परन्तु हे भारत, सभी देहाभिमानियों को मोहित करनेवाले तमोगुण को अज्ञान से उत्पन्न जान। यह जीवात्मा को प्रमाद, आलस्य और निद्रा से बाँधता है।
¤ सत्वगुण सुख की स्पृहा से बाँधता है तथा रजोगुण कर्म की स्पृहा से, जबकि तमोगुण ज्ञान को आवृत्त करके प्रमाद से बाँधता है।
¤ रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्त्वगुण प्रकट होता है और सत्वगुण और तमोगुण को दबाकर रजोगुण प्रकट होता है, वैसे ही सत्त्वगुण और रजोगुण को दबाकर तमोगुण प्रकट होता है।
¤ जिस काल में इस देह में समस्त इन्द्रिय-द्वारों से ज्ञान का प्रकाश विकिरित होता है, उस काल में ऐसा जानना चाहिए की सत्त्वगुण वर्धित हुआ है।
¤ हे भरतर्षभ, जब रजोगुण बढ़ता है तब लोभ, प्रवृत्ति, कर्मों का आरम्भ, अशान्ति और लालसाएँ उत्पन्न होती हैं।
¤ तमोगुण के बढने पर अन्धकार, निष्क्रियता, प्रमाद और मोह ये सब उत्पन्न होते हैं।
¤ सत्कर्मों का फल सात्त्विक और निर्मल कहा गया है, राजसिक कर्मों का फल दुःख और तामसिक कर्मों का फल अज्ञान बताया गया है।
¤ सत्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है और रजोगुण से मात्र लोभ, तथा तमोगुण से प्रमाद, मोह और अज्ञान।
¤ जीवात्मा इस स्थूल शरीर की उत्पत्ति के कारणरूप इन तीनों गुणों को पार कर जन्म, मृत्यु वृद्धावस्था तथा समस्त प्रकार के दुःखों से मुक्त होकर अमर हो जाता है।
¤ अर्जुन ने पूछा - हे प्रभो। इन तीनों गुणों से अतीत पुरुष किन किन लक्षणों से युक्त होता है और किस प्रकार का आचरणवाला होता है? वह किस प्रकार इन तीनों गुणों से अतीत होता है?
¤ श्रीभगवान् ने कहा - जो मान और अपमान में सम है, जो मित्र और वैरी को समान मानता है और जो समस्त प्रकार के कर्मों के आरम्भ का परित्यागी है, ऐसा ही पुरुष गुणातीत कहा जाता है।
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