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भगवान महावीर की वाणी

स्वामी ब्रह्मस्थानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9554
आईएसबीएन :9781613012659

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भगवान महावीर के वचन

निर्वाण


¤ मोक्षावस्था का शब्दों में वर्णन सम्भव नहीं है, क्योंकि वहाँ शब्दों की प्रवृत्ति नहीं है। न वहाँ तर्क का ही प्रवेश है, क्योंकि वहाँ मानस व्यापार सम्भव नहीं है। मोक्षावस्था संकल्प-विकल्पातीत है। साथ ही समस्त मल कलंक से रहित होने से वहाँ ओज भी नहीं है। रागातीत होने के कारण सातवें नरक तक की भूमि का ज्ञान होने पर भी वहाँ किसी प्रकार का खेद नहीं है।

¤ जहाँ न दुःख है न सुख, न पीड़ा है न बाधा, न मरण है न जन्म, वही निर्वाण है।

¤ जहाँ न इन्द्रियाँ हैं न उपसर्ग, न मोह है न विस्मय, न निद्रा है न तृष्णा और न भूख, वही निर्वाण है।

¤ जहाँ न कर्म है न नोकर्म, न चिन्ता है न आर्तरौद्र ध्यान, न धर्मध्यान है और न शुक्लध्यान, वही निर्वाण है।

¤ वहाँ अर्थात् मुक्तजीवों में केवलज्ञान, केवलदर्शन, केवलसुख, केवलवीर्य, अरूपता, अस्तित्व और सप्रदेशत्व ये गुण होते हैं।

¤ जिसे महर्षि ही प्राप्त करते हैं, वह स्थान निर्वाण है, अबाध है, सिद्धि है, लोकाग्र है, क्षेम, शिव और अनाबाध है।


।। समाप्त ।।


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