लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> भगवान बुद्ध की वाणी

भगवान बुद्ध की वाणी

स्वामी ब्रह्मस्थानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :72
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9553
आईएसबीएन :9781613012871

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

174 पाठक हैं

भगवान बुद्ध के वचन

स्व

¤ वह व्यक्ति जो स्व के स्वभाव को जानता है और यह समझता है कि उसकी इन्द्रियाँ कैसे कार्य करती हैं, वह 'मैं' के लिए कोई अवकाश नहीं देता तथा इस प्रकार वह अनन्त शान्ति प्राप्त करता है। संसार 'मैं' के चिन्तन में लीन है और इससे मिथ्याबोध की सृष्टि होती है।

¤ कुछ कहते हैं कि 'मैं' मृत्यु के बाद बचा रहता है, कुछ कहते हैं कि वह नष्ट हो जाता है। ये दोनों गलत हैं तथा उनकी भूल अत्यन्त घातक है।

¤ क्योंकि यदि वे 'मैं' को नाशवान् कहें तब तो जिन फलों की प्राप्ति के लिए वे चेष्टारत हैं, वे भी नष्ट हो जाएँगे और कुछ समय बाद कोई भावी जीवन भी नहीं रहेगा। पापपूर्ण स्वार्थ परायणता से ऐसी मुक्ति पुण्यहीन हुआ करती है।

¤ दूसरी ओर, जब कुछ लोग यह कहते हैं कि 'मैं' नष्ट नहीं होगा, तब तो जीवन और मृत्यु के बीच में केवल एक ही अस्तित्व अजन्मा और अमर होगा। अगर उनका 'मैं' ऐसा है, तो वह पूर्ण है तथा कर्मों के द्वारा उसे पूर्ण नहीं बनाया जा सकता। यह चिरन्तन अविनाशी 'मैं' कभी भी परिवर्तित नहीं होगा। स्व भगवान् और स्वामी हो जाएगा तथा तब पूर्ण को पूर्ण बनाने से कोई लाभ नहीं होगा, नैतिक उद्देश्य और निर्वाण अनावश्यक हो जाएँगे।

¤ पर हम अब सुख और दुःख के चिह्नों का अवलोकन करते हैं। इसमें कहाँ संगति है? यदि हमारे कार्यों को करनेवाला 'मैं' नहीं है, तो 'मैं' की सत्ता ही नहीं है, कार्य के पीछे कोई कर्ता नहीं है, जानने के पीछे कोई ज्ञाता नहीं है, जीने के पीछे कोई भगवान् नहीं है।

¤ अब ध्यान दो और सुनो। इन्द्रियाँ विषयों से मिलती है और उनके सम्पर्क से संवेदना का जन्म होता है। उससे स्मृति पैदा होती है। अत: जैसे आतशी शीशे के माध्यम से सूर्य की शक्ति अग्नि के रूप में प्रकट होती है, वैसे ही इन्द्रिय और विषय से उत्पन्न ज्ञान से उस विधाता का जन्म होता है, जिसे तुम 'स्व' कहते हो।

¤ अंकुर बीज से उत्पन्न होता है, बीज अंकुर नहीं है; दोनों एक और समान नहीं है फिर वे भिन्न भी नहीं हैं। इस प्रकार प्राणि-जीवन का जन्म होता है।

¤ तुम जो 'मैं' के दास हो, जो प्रातःकाल से रात्रि पर्यन्त स्व की सेवा में खटते रहते हो, जो जन्म, वार्धक्य, रुग्णता और मृत्यु के निरन्तर भय में जीवन यापन करते हो, यह सुसमाचार सुनो कि तुम्हारे क्रूर स्वामी का कोई अस्तित्व नहीं है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai