ई-पुस्तकें >> भगवान बुद्ध की वाणी भगवान बुद्ध की वाणीस्वामी ब्रह्मस्थानन्द
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भगवान बुद्ध के वचन
स्तुति
हे अनन्त जीवन !
हे परम मृत्यु !
मैं तुम्हारी शरण में आया हूँ।
तुम्हारी अग्नि से मुझे अपने निर्वापित दीप को जलाने दो।
मेरे भ्रू पर अपनी महिमा चिन्हित करके तुम मेरी लज्जा को सर्वदा के लिए मिटा दो।
तुम्हारे चरण रूपान्तरकारी अग्नि हैं जो मेरी खोट को स्वर्ण बना देगी।
मेरे भीतर की सारी कलौंस आग में भस्मीभूत हो जाए, और भ्रमजाल विदीर्ण हो उठे।
- रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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