लोगों की राय

उपन्यास >> अवतरण

अवतरण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

137 पाठक हैं

हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘इस पर दुष्यन्त ने बिना विचारे ही कह दिया, ऐसा ही होगा शकुन्तले! मैं शीघ्र ही तुमको अपने नगर में ले चलूँगा। हे सुश्रोणि! तुम राजभवन में ही रहने योग्य हो, मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि मैं अपनी चतुरंगिणी सेना भेजूँगा जो तुमको राजभवन में ले जायेगी।’’

‘‘शकुन्तला मान गई। दोनों का समागम हुआ और पश्चात् दुष्यन्त उसको विश्वास दिलाकर विदा हुआ।’’

‘‘व्यासजी लिखते हैं कि विदा होते समय शकुन्तला के आंसू निकल आये और वह राजा के चरणों में गिर पड़ी। इस पर राजा ने शकुन्तला को उठाकर बार-बार कहा, ‘‘राजकुमारी! चिन्ता न करो, मैं अपने पुण्य की शपथ खाकर कहता हूँ कि तुमको अवश्य बुला लूँगा।’’

‘‘परन्तु वैद्यजी! हुआ यह कि राजा गया और फिर उसने शकुन्तला की सुध नहीं ली। शकुन्तला के लड़का हुआ। वह लड़का भी कण्व के आश्रम में ही पला और बड़ा हुआ। लड़का होनहार था। महर्षि की शिक्षा भी उत्कृष्ट थी। परन्तु राजा को न लड़का और न उसकी माता का ही स्मरण रहा और न ही उसको यह स्मरण रहा कि किसी ऋषि के आश्रम में उसने किसी लड़की से समागम किया था। चतुरंगिणी सेना का तो क्या कहना, उससे कोई राजभवन की दासी भी उसकी लिवाने नहीं भेजी।’’ १
१. सत्यं में प्रतिजानीहि यथा वक्ष्याम्यहं रहः
मयि जायेत यः पुत्रः स भवेत् त्वदनन्तरः।
युवराजो महाराज सत्यमेतद् ब्रवीमि ते
यद्येतदेवं दुष्यन्त अस्तु में संगमस्त्वया।। आदिपर्व, ७३-१६-१७

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book