लोगों की राय

उपन्यास >> अवतरण

अवतरण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

137 पाठक हैं

हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।

11

मैं समझता था कि महर्षि द्वैपायन नियोग को पसन्द नहीं करेंगे। यह ठीक था कि वे पराशर की सन्तान थे और बाल्यकाल में उनके पास रहे थे, परन्तु वे वेद-वेदांग और शास्त्रों के ज्ञाता होने के कारण नियोग से राज्य-वंश चलाने के पक्ष में सहयोग नहीं देंगे। इस कारण विचार कर मैं इस परिणाम पर पहुँचा था कि सत्यवती का वंश चल नहीं सकेगा।

परन्तु व्यासजी के आश्रम पर पहुँच जब मैंने महर्षि से हस्तिनापुर की अवस्था का वर्णन किया तो मैं उनके विचार सुन आश्चर्यचकित रह गया। वे पूर्ण वृत्तान्त सुन, बिना किसी प्रकार के उद्गार प्रकट किये बोले, ‘‘कल यहाँ से प्रस्थान कर दूंगा।’’

‘‘विद्वद्वर महर्षि! एक बात विचार कर लेना आवश्यक है। यह परिवार चलाने का प्रश्न भारत के एक विशाल राज्य का उत्तराधिकारी उत्पन्न करने के साथ सम्बन्ध रखता है। इस कारण क्या यह उचित है कि इन स्त्रियों से इस प्रकार सन्तान उत्पन्न कर, जैसे राजमाता चाहती हैं, राज्य को उत्तराधिकारी दिया जाय?’’

‘‘यह विचार करना मेरा कार्य नहीं। मुझको अपनी माता का आदेश मिला है और इसका पालन करना मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूँ। माता, जिसने शरीर दिया है और धर्म तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए अवसर प्रदान किया है, वह प्राण भी माँगे तो सहर्ष दिये जा सकते हैं। सन्तानोत्पत्ति तो कुछ अधिक कठिन कार्य नहीं है।’’

‘‘यह धर्मानुकूल होगा क्या?’’

‘‘इसमें अधर्म क्या है? धर्माशास्त्र में विशेष अवस्था में इसका विधान है।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book