उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
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अगले दिन राजमाता के आदेश पर मुझे उनके पास ले जाया गया। भेंट उसी आगार में हुई, जहाँ पहली बार हुई थी। जब मैं वहाँ पहुँचा तो राजमाता के साथ राजकुमार देवव्रत तथा दो अति सुन्दर युवतियाँ बैठी थीं। इनमें एक मर्यादा थी। मेरा विचार था कि दूसरी महारानी अम्बिका होंगी।
जब मैं नमस्कार कर राजमाता का आदेश पा, उनके सम्मुख बैठ गया तो राजकुमार ने उन युवतियों का परिचय करा दिया। मेरा अनुमान था कि महारानी तथा उनकी दासी मर्यादा हैं, परन्तु मुझे आश्चर्य हो रहा था कि दासी भी महारानी के साथ, राजमाता के पीछे क्यों बैठी है? जब राजकुमार ने परिचय कराया तब मुझे पता चला कि मर्यादा महारानी अम्बिका थी तथा दूसरी युवती अम्बालिका थी।
जब राजकुमार ने अम्बिका का परिचय कराया तो मैं आश्चर्य से उसका मुख देखने लगा, परन्तु इसी समय महारानी ने मुझे आँख से संकेत कर दिया। इस पर मैं सँभल गया। मैंने समझा कि महारानी संकेत कर रही है कि मैं उनके पिछले दिन मेरे आगार में आने की बात न कहूँ। मैं तो वैसे ही उनसे वचनबद्ध था।
मेरे बैठने पर राजमाता ने कहना आरम्भ किया, ‘‘संजयजी! हमारे परिवार का बीज नाश को प्राप्त हो रहा है। मैं इन पुत्रवधुओं से नियोग के लिए कह रही हूँ, परन्तु ये मान नहीं रही। आप इनको धर्म क्या है, इस विषय पर उपदेश दें। ये दोनों धर्मभीरु हैं। ये नियोग करने से पाप की भागी हो जाना मानती हैं।’’
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