लोगों की राय

उपन्यास >> अवतरण

अवतरण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

137 पाठक हैं

हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


जब वे चले गये तो मैंने पूछा, ‘‘महाराज! मेरे लिए क्या आज्ञा है?’’

‘‘अभी कुछ नहीं।’’ राजकुमार ने कहा।

‘‘राजमाताजी ने कहा था कि मुझको एक-दो दिन में प्रस्थान कर देना चाहिए।’’

‘‘महारानियाँ नियोग के लिए तैयार नहीं हो रहीं।’’

‘‘मैं भी समझता हूँ कि महर्षि व्यास इस कार्य के लिए पसन्द नहीं किये जायेंगे।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘मन की भावनाओं में युक्ति काम नहीं करती। महाराज! सम्भोग-क्रिया भावना का विषय है। इसका युक्ति से बहुत कम सम्बन्ध है।’’

मैंने और अधिक कहना उचित नहीं समझा। मैं नहीं जानता था कि महारानियों ने किन कारणों से व्यासजी को पसन्द नहीं किया था। मुझको चुप देख राजकुमार ने पूछा, ‘‘संजयजी! आपकी दृष्टि में कोई अन्य पुरुष है, जिसके महारानियों द्वारा पसन्द किये जाने की अधिक सम्भावना हो।’’

‘‘मैं महाराज! मैं एक जानना हूँ। यदि वह स्वीकार कर ले, तो आशा है महारानियाँ मान जायेंगी और वह धर्म-संगत भी होता।’’

‘‘कौन है वह?’’

‘‘श्रीमान् स्वयं इस योग्य हैं। शास्त्र में भी पति के भाई को देवर अर्थात् द्वितीय वर माना है।’’

‘‘राजमाता मुझको कह चुकी हैं, परन्तु मैं इसको अपने वचन-विरुद्ध समझता हूँ। साथ ही मैं अखण्डित ब्रह्मचर्य का पालन करना अपने लिए हितकर मानता हूँ।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book