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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।

2

माणिकलाल ने, जब मैं उससे विदा लेने वाला था, कहा, ‘‘आज सायंकाल यदि हमारे साथ भोजन करना हो तो आ जाइयेगा। अन्यथा कल फ्रन्टियर मेल के समय स्टेशन पर आ जाइयेगा। अधिकतर बाराती कल उसी गाड़ी से आने वाले हैं।

‘‘हाँ, कल सायंकाल छह बजे से पहले सपत्नीक अवश्य पधारियेगा।’’

मैंने बता दिया, ‘‘मेरी धर्मपत्नी तो कदाचित् आ नहीं सकेगी। कल सायंकाल उसके भाई तथा भावज को कलकत्ता के लिए विदा होना है। वह उनको छोड़ने स्टेशन पर जायेगी।’’

इससे माणिकलाल के मुख पर कुछ निराशा दिखाई दी, परन्तु शीघ्र ही सतर्क हो उसने कहा, ‘‘परसों दहेज मिलने के समय तो उनको आना ही चाहिए। अब तो वह नोरा की सास के रूप में समझी जायेंगी।’’

मैंने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘यत्न करूँगा।’’

मैं जब लौटकर घर पहुँचा तो मेरी पत्नी ने स्वयं ही कहा, ‘‘कल शाम की गाड़ी से नरेन्द्र के जाने का विचार था, परन्तु अब वे नहीं जा रहे। परसों सात तारीख को शाम की गाड़ी से हम सब दिल्ली जायेंगे।’’

‘‘परन्तु उस दिन के लिए सीट रिजर्व तो करानी ही पड़ेंगी।’’

‘‘इसके लिए पिताजी स्टेशन पर गये हुए हैं।’’

अब मैंने उसको बताया, ‘‘मैं भी कल जा नहीं सकता था। हमारे रेल वाले मित्र का कल विवाह है और मैं उसका पिता बन, मिलनी करने जा रहा हूँ।’’

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