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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

इस आदमी पर जरूर हमें हंसी आ सकती है। लेकिन हम सब इसी तरह के आदमी हैं। हमारा चित्त प्रतिपल वर्तमान से छिटक जाता है, और भविष्य में उतर जाता है। और भविष्य के संबंध में आप कुछ भी सोचें, सभी ऐसा ही फिजूल और व्यर्थ है। क्योंकि भविष्य है नहीं।

जो भी आप सोचेंगे, सभी कल्पना, सभी इमेजिनेशन है। जो भी आप सोचेंगे, वह इसी तरह का झूठा और व्यर्थ है। जैसे इस आदमी का, इस छोटी सी बात से कि घड़ी में कितना बजा है, इतनी लंबी यात्रा पर कूद जाना। इसका चित्त हम सबका चित्त है।

हम सब प्रतिपल खड़े होते नहीं वर्तमान पर और भविष्य में कूद जाते हैं, या, या अतीत में कूद जाते हैं। लेकिन जो क्षण मौजूद होता है, उसमें हम मौजूद नहीं हो पाते। और उसकी ही सत्ता है, वही वास्तविक है। अतीत और भविष्य इन दोनों के बंधनों में मनुष्य की चेतना वर्तमान से अपरिचित रह जाती है। अतीत और भविष्य दोनों मनुष्य की ईजादें हैं। जगत की सत्ता में उनका कोई भी स्थान नहीं, उनका कोई भी अस्तित्व नहीं।

भविष्य और अतीत, पास्ट और फ्यूचर--कल्पित समय है, स्यूडो टाइम है, वास्तविक समय नहीं। वास्तविक समय, रियल टाइम तो केवल वर्तमान का क्षण है। वर्तमान के इस क्षण में जो जीता है, वह सत्य तक पहुंच सकता है, क्योंकि वर्तमान का क्षण ही द्वार है।

लेकिन जो अतीत और भविष्य में भटकता है, वह सपने देख सकता है, स्मृतियों में खो सकता है। लेकिन सत्य, सत्य से उसका साक्षात कभी भी संभव नहीं है।

इन तीन दिनों में ऐसे जिएं कि जो क्षण आपके पास है, बस वही है। दूसरा क्षण मनुष्य के हाथ में होता भी नहीं। एक ही क्षण होता है, दो क्षण नहीं होते। और उस एक क्षण को हम गवां दें--बीते हुए क्षणों के लिए या आने वाले क्षणों के लिए, तो बडी भूल हो जाती है। एक छोटा सा क्षण मिलता है मनुष्य को, उससे ज्यादा नहीं। उस छोटे से क्षण को जीने की कला ही धर्म में प्रवेश की कला है, वही है आर्ट।

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