लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

434 पाठक हैं

माथेराम में दिये गये प्रवचन

अभी आपके भीतर इंडीवीजुअल का जन्म नहीं हुआ है। अभी आप व्यक्ति कहने के हकदार नहीं है अपने को। व्यक्ति तो वही कह सकता है अपने को, जिसने भीड़ से अपने स्वयं के मन को मुक्त कर लिया। जिसने राजपथ छोड़ दिया और सत्य की अनजानी पगडंडियों की यात्रा शुरू की है। और जो व्यक्ति ही नहीं बन सकता, वह आत्मा को जान सकेगा?

इंडीवीजुअल होना, व्यक्ति होना, आत्मा की खोज का पहला सोपान है। आत्मा को आप कभी नहीं पहुंच सकते हैं, जब तक आप व्यक्ति ही नहीं हैं। अभी तो आप भीड़ के एक हिस्से हैं। अभी तो आप भीड़ के एक अंश हैं। अभी आपका अपना होना, आपका बीइंग, अभी नहीं है। अभी आप एक बड़ी मशीन के कल-पुर्जे हैं। वह बड़ी मशीन जैसी चलती है, वैसे आप चलते हैं। अभी आपकी अपनी कोई निजी सत्ता नहीं है। तो जीवन और ताजगी कहाँ से संभव हो सकती है अभी हम एक यंत्र के हिस्से हैं, हम यात्रिक हैं। अभी हम मनुष्य भी अपने को नहीं कह सकते हैं। मनुष्य होने की पहली शुरुआत भीड़ से मुक्ति है।

बचपन से भीड़ पकड़ना शुरू कर देती है। बच्चा पैदा होता है और भीड़ उसे पकड़नी शुरू कर देती है। वह जो क्राउड है हमारे चारों तरफ, वह डरती है कि बच्चा कहीं छिटक न जाए, उसके फोल्ड से, उसके घेरे से। वह उसको शिक्षा देनी शुरू कर देती है--धर्म, शिक्षा और जमानेभर की शिक्षाएं। और उसे अपने घेरे में बांध लेने के सब प्रयास करती है। इसके पहले कि उस बच्चे में सोच-विचार पैदा हो, भीड़ उसके चित्त को सब तरफ से जकड़ लेती है। फिर जीवनभर उसी भीड़ के शब्दों में वह बच्चा सोचता है, और जीता है। अर्थात वह कभी भी नहीं सोचता और कभी भी नहीं जीता। उसके भीतर स्वयं का चिंतन, स्वयं का विचार, स्वयं का अनुभव, जैसा कुछ भी नहीं रह जाता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book