ई-पुस्तकें >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
श्वास शांत हो रही है श्वास शांत हो रही है श्वास शांत हो रही है। श्वास भी बिलकुल ढीली छोड दें। अब बिलकुल शांत और मौन चारों तरफ जो भी आवाजें सुनाई पड़ रही हैं, उन्हें सुनें। रात्रि की आवाजें आ रही हैं, जंगल का सन्नाटा बोल रहा है, उसे मौन, जागे हुए सुनते रहे। सुनें। शांति से सुनें। भीतर जागे रहें और सुनते रहें। सुनते-सुनते ही मन शांत होता जाएगा। सुनते-सुनते मन एकदम नीरव, एकदम शांत हो जाएगा। सुनें।
.. सुनें, रात्रि के सन्नाटे को सुनें। सुनते-सुनते ही मन शांत और मौन होता जाएगा। मन शांत हो रहा है, मन शांत हो रहा है, मन शांत हो रहा है, मन शांत हो रहा है, मन शांत हो रहा है, मन शांत हो रहा है, मन शांत हो रहा है, मन शांत हो रहा है।
मन शांत होता जा रहा है, मन शांत हो रहा है। मन शांत हो गया है, मन शांत हो गया है, मन बिलकुल शांत हो गया है।
मन शांत हो गया है, मन एकदम शांत हो गया है। मन शांत हो गया है। मन शांत हो गया, मन बिलकुल शांत और शून्य हो गया है। शून्य, बिलकुल शून्य हो गया है।
अब धीरे-धीरे दो-चार गहरी श्वास लें। धीरे-धीरे दो-चार गहरी श्वास लें। फिर बहुत आहिस्ता से आँख खोलें। जैसी शांति भीतर है, वैसी ही बाहर भी है। धीरे-धीरे आँख खोले और बाहर देखें। फिर धीरे-धीरे उठ आएं। शांति से मौन चुपचाप उठकर बैठते जाएं। धीरे, आहिस्ता अपनी-अपनी जगह चुपचाप बैठ जाएं।
दुःख पहुचाने वाली बात आपको मैंने कही हो, किसी को भी--स्वप्न में भी दुःख पहुँचाने का मेरा मन नहीं है। लेकिन मजबूरी है- कुछ बातें दुःख पहुँचाने वाली हो सकती है।
अत में, किसी को दुःख पहुँच गया हो, उससे मैं क्षमा मांगता हूँ--सभी से। और विदाई के इन क्षणों में सबके भीतर बैठें परमात्मा को प्रणाम करता हूँ। मेरे प्रणाम स्वीकार करें।
माथेरान, दिनांक 21-10-67, रात्रि
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