ई-पुस्तकें >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
|
434 पाठक हैं |
माथेराम में दिये गये प्रवचन
सेंध लगाकर बूढ़ा बाप भीतर हुआ। उसके पीछे उसने अपने लड़के को भी बुलाया। वे महल के अंदर पहुंच गए। उसने कई ताले खोले और महल के बीच के कक्ष में वे पहुंच गए। कक्ष में एक बहुत बड़ी बहुमूल्य कपड़ों की अलमारी थी। अलमारी को बूढ़े ने खोला। और लड़के से कहा, भीतर घुस जाओ और जो भी कीमती कपड़े हों, बाहर निकाल लो। लड़का भीतर गया, बूढ़े बाप ने दरवाजा बंद करके ताला बंद कर दिया। जोर से सामान पटका और चिल्लाया--चोर। और सेंध से निकलकर घर के बाहर हो गया।
सारा महल जग गया। और लड़के के प्राण आप सोच सकते हैं, किस स्थिति में नहीं पहुंच गए होंगे। यह कल्पना भी न की थी कि यह बाप ऐसा दुष्ट हो सकता है। लेकिन सिखाते समय सभी मां-बाप को दुष्ट शायद होना पड़ता है। लेकिन एक बात हो गई, ताला बंद कर गया है बाप, कोई उपाय नहीं छोड़ गया बचने का। चिल्ला गया है--महल के संतरी जाग गए, नौकर-चाकर जाग गए हैं, प्रकाश जल गए हैं, लालटेनें घूमने लगीं हैं, चोर की खोज हो रही है। चोर जरूर मकान के भीतर है। दरवाजे खुले पड़े हैं, दीवाल में छेद है।
फिर एक नौकरानी मोमबत्ती लिए हुए उस कमरे में भी आ गई है, जहाँ वह बंद है। अगर वे लोग न भी देख पाए तो भी फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि वह बंद है और निकल नहीं सकता, दरवाजे पर ताला है बाहर। लेकिन कुछ हुआ। अगर आप उस जगह होते तो क्या होता?
आज रात सोते वक्त जरा खयाल करना कि उस जगह अगर मैं होता--उस लड़के की जगह तो क्या होता? क्या उस वक्त आप विचार कर सकते थे? विचार करने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। उस वक्त आप क्या सोचते? सोचने का कोई मौका नहीं था। उस वक्त आप क्या करते?
|