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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

फिर बात खतम हो गई, वह किनारे पर रह जाएगा वह आदमी, क्योंकि उसने एक शर्त लगाई है कि जब तक मैं तैरना न सीख लूं, तब तक मैं पानी में नहीं उतर सकता। और पानी में उतरना जरूरी है तैरना सीखने के लिए भी।

तो आप पूछते हैं कि क्या करें? पूरी, हमें सारी साधना स्पष्ट हो जानी चाहिए। वह स्पष्ट होगी आपके चलने से। एक कदम भर स्पष्ट हो जाए तो काफी है। फिर आप चलिए। फिर आप उतरिए पानी में। तो फिर आप सीखेंगे चलने से, गति करने से। नहीं तो जीवनभर कभी नहीं सीखेंगे।

इधर तीन दिनों में जो थोड़ी सी बातें हुई हैं, इसमें से कुछ भी--एक कणभर आपको दिखाई पड़ता हो कि करने जैसा है तो करिए। और उस कणभर को करने में आप पाएंगे कि और आगे का रास्ता आलोकित हो गया। उतना और चलिए और आप पाएंगे और बड़ा रास्ता आलोकित हो गया। जितना चलिए, उतना ही रास्ता प्रकाशित होता चला जाएगा।

लेकिन आप शुरू से लेकर आखिरी तक पूरी पंचवर्षीय योजना अभी जान लेना चाहते हो तो उसके लिए गवर्मेंट आफ इंडिया से संबंध स्थापित करना चाहिए। वहाँ इस तरह की बड़ी कारीगरियां निरंतर चलती रहती हैं। वे बड़ी लंबी योजनाएं बनाते हैं। एक कदम चलने की जिन्हें तमीज नहीं, वे सारे लोग हजारों कदमों की योजनाएं बनाते है। तो वे हजारों कदम तो कभी उठते नहीं, वह एक कदम भी जो उठ सकता था, वह भी नहीं उठ पाता है। एक कदम काफी है।

गांधी जी एक भजन गाया करते थे--वन स्टेप इज इनफ फार मी--उसमें एक पंक्ति है, एक कदम काफी है। सच है यह बात। एक कदम काफी है। लेकिन एक कदम जो नहीं चलता और हजारों कदमों का विचार करता रहता है, वह खो देता है, जीवन से वंचित रह जाता है।

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