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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

उस बूढ़े ने कहा, बड़ा पागल है तू। दो फीट रोशनी बहुत है। एक दफे में एक आदमी एक कदम से ज्यादा चलता ही नहीं। एक कदम चल, तब तक रोशनी दो फीट आगे हो जाएगी। फिर एक कदम चल, तब तक रोशनी फिर दो फीट आगे हो जाएगी। तुझे हमेशा दो फीट आगे रोशनी उपलब्ध रहेगी, तू चल तो। दस मील क्या, दस हजार मील छोटी लालटेन से पार हो सकते हैं। लेकिन तू भी अजीब गणित लगाने बैठा है कि दो फीट रोशनी जाती है तो दस मील के लिए कितनी रोशनी चाहिए। इतनी बड़ी लालटेन नहीं बन सकती, बहुत मुश्किल है, फिर तू कभी नहीं जा सकेगा।

तो मैं निवेदन करूंगा, छोटी सी रोशनी जो भी दिखाई पड़ती हो, उसमे चलना शुरू कर दें। रोशनी काफी है, थोड़ी से थोड़ी भी काफी है, क्योंकि एक कदम से ज्यादा कभी कोई चल सकता है? एक कदम चलिएगा, रोशनी और एक कदम आगे हो जाएगी। लेकिन चलना हमें नहीं है। हम हिसाब लगाने में बहुत कुशल हैं, हम बैठकर हिसाब लगाते हैं।

मैंने आपको कहा, निरीक्षण करिए क्रोध का। आप फिर पूछते हैं, क्रोध के लिए क्या करें?

निरीक्षण करिए। नहीं आज एकदम से हो सकेगा निरीक्षण। दो फीट ही सही, दस मील न सही, थोड़ा सा ही सही, लेकिन करें तो। कुछ चीजें हैं, जो केवल करके ही जानी जा सकती हैं, जिन्हें जानने का और कोई उपाय नहीं है।

एक आदमी तैरना सीखना चाहता हो, वह कहे कि पहले हमें तैरना सिखा दें, फिर हम पानी में उतरेंगे। तो बड़ी मुश्किल है। क्योंकि वह कहेगा कि जब तक मैं तैरना न सीखूं, तब तक पानी में उतरूं कैसे? और जब तक कोई पानी में न उतरे तब तक तैरना सीखे कैसे?

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