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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

तो सेक्स से घबड़ाएं न। क्या आपको पता है आज तक कोई भी नपुंसक, कोई भी इंपोटेड जगत में कुछ भी पैदा कर सका है कुछ भी। बच्चे तो नहीं लेकिन और कुछ--कविता, गीत, संगीत--कुछ पैदा कर सका है कुछ क्रिएट कर सका है नहीं, उसके पास सेक्स की ऊर्जा नहीं है, सेक्स की एनर्जी नहीं है। वही एनर्जी सब कुछ पैदा करती है--बच्चे भी, गीत भी, कविता भी, चित्र भी, मूर्ति भी, शास्त्र भी--जो कुछ पैदा होता है उसी ऊर्जा से पैदा होता है। जो कुछ भी पैदा होता है सेक्स के अतिरिक्त किसी चीज से पैदा नहीं होता।

एक महान पुस्तक पैदा होती है, एक महान गीत पैदा होता है, एक महान मूर्तिकार एक अदभुत मूर्ति बनाता है पत्थर में फोड़कर, ये सब भी सेक्स का ही उत्पादन है। और इसलिए आप एक दूसरी बात देखकर हैरान हो जाएंगे--जो आदमी सुंदर मूर्तियां पैदा कर पाता है, जो आदमी सुंदर गीत लिख पाता है, जो आदमी कुछ पैदा कर पाता है, एक वैज्ञानिक एक आविष्कार, एक नई चीज निर्मित कर पाता है--तो आप हैरान हो जाएंगे, ऐसे आदमी की जिंदगी में सेक्स का प्रॉब्लम होता ही नहीं। क्योंकि उसकी सारी सेक्स की ऊर्जा नए सृजन को खोज लेती है। उसकी जिंदगी में यह बात आती ही नहीं, उसे खयाल में भी नहीं आती।

लेकिन जिस आदमी की जिंदगी में और किसी तरह का कोई सृजन नहीं है, उसके लिए भी परमात्मा ने एक सृजन का काम छोड़ा हुआ है, कम से कम बच्चे पैदा करे। वह सृजन का इतना आनंद तो ले कम से कम। उसने कुछ पैदा किया, उसने कुछ बनाया। वह जमीन को ऐसे ही नहीं छोड़ जा रहा है। कुछ पीछे छोड़ जा रहा है, यह तृप्ति और यह संतुष्टि उसे मिले।

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