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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

ये सारी गंदी फिल्में, ये सारे गंदे चित्र, यह सारा गंदा वातावरण आपकी सेक्स के संबंध में यह जात धारणा की प्रतिक्रिया है, उसका फल है। यह उससे पैदा हुआ है। और जो कौम जितनी ज्यादा सेक्स के प्रति भयभीत और घबड़ाई हुई है, उस कौम का चित्त उतना ही ज्यादा सेक्सुअलिटी से भरा हुआ है।

लेकिन हम तथ्यों को देखना नहीं चाहते, हमने हिम्मत खो दी है। हम सोचना नहीं चाहते, हम विचार नहीं करना चाहते। हम आँख बंद करके जैसा चल रहा है चलते रहना चाहते हैं। ऐसे नहीं हो सकता है। इस संबंध में हमारी पूरी धारणा परिवर्तित होनी चाहिए।

सेक्स के संबंध में किसी तरह की निंदा का कोई कारण नहीं है। और जब निंदा करते हैं और भयभीत होते हैं, घबड़ाते हैं तब भीतर से धक्के आते हैं, चोटें आती हैं, लहरें आती हैं उनमें हम बहते हैं तो पश्चात्ताप होता है। सब मुश्किल हो जाता है। आनंद असंभव हो जाता है। नहीं बहते है, रुकते हैं तो पीडा हो जाती है। जाते हैं, बहते हैं तो पीडा हो जाती है। सब तरफ, दोनों तरफ कुए-खाई खड़े हो जाते हैं। इस तरफ गिरते हैं तो तकलीफ, उस तरफ गिरते हैं तो तकलीफ।

फिर आदमी क्या करे? तो फिर आदमी आवागमन से छुटकारे का उपाय सोचने लगता है कि किसी तरह से संसार से ही छुटकारा हो जाए। यह संसार बड़ा गड़बड़ है।

यह गड़बड़ हमने किया हुआ है। यह संसार गड़बड़ नहीं है। यह संसार बहुत अदभुत रस, बहुत अदभुत आनंद को देने में समर्थ है। लेकिन हमने सब रस विकृत कर लिया, हम पागल हो गए हैं। और इस पागल के केंद्र पर, हमारे पागलपन के सारे केंद्र पर कामवासना बैठी हुई है।

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