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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

ठीक क्षण भी आ गया, लेकिन कोई भी नहीं चिल्लाया। क्योंकि हर एक सोचता था कि मैं चुप रह जाऊं तो इतनी बड़ी आवाज सुनने का मौका फिर दोबारा आने वाला नहीं है। सब चिल्लाएंगे--कितनी अद्भुत आवाज होगी मैं सुन लूं। और एक के न चिल्लाने से क्या फर्क पड़ेगा। दुनिया में कोई भी नहीं चिल्लाया। और वह एक क्षण टोटल साइलेंस का क्षण था, क्योंकि सभी प्रतीक्षा कर रहे थे। कोई भी पीछे के खयाल में नहीं था, आगे के खयाल में नहीं था। इसी वक्त एक घटना घट रही थी कि सारी दुनिया में सारे लोग चिल्लाएंगे ''हो, हो, हो' और इस आवाज को हम सुन लें।

उस क्षण--उस अदभुत होशियार आदमी ने बड़ी तरकीब का काम किया था। फिर बहुत समय से ऐसा कोई काम नहीं हुआ। और आदमी की जिदगी में कोई शांति का क्षण नहीं। उस वक्त सारे लोग हैरान रह गए थे। उस पल के बीत जाने पर लोगों को पता चला था, कितनी गहरी शांति संभव है। क्योंकि उस क्षण कोई पास्ट नहीं था, कोई फ्यूचर नहीं था। एक उसी पल में घटना घटने वाली थी। जरा चूक गए तो चूक गए। तो सारे लोग सचेत, और प्रत्येक आदमी ने सोचा था मैं सुन लूं। सुना सबने--आवाज नहीं सुनी, शांति सुनी। आवाज तो हुई ही नहीं। लेकिन साइलेंस सुनी।

देखें कल से, एक-एक पल में थोड़ा खड़े होकर। हो सकता है वह शांति आप भी सुन सकें। और वह सुन लें तो आपकी जिंदगी दूसरी हो जाती है।

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