ई-पुस्तकें >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
|
434 पाठक हैं |
माथेराम में दिये गये प्रवचन
उस युवक ने कहा कि किस गांव में आप रहते हैं मैं वहाँ जरूर आना चाहूँगा। और संभव है, अपनी यात्राओं में वहा से मैं निकलूं। तो मैं आपके दर्शन करने आना चाहूँगा। किस मोहल्ले में आप रहते हैं?
उसने कहा, तुम पूछ लेना मेरे गांव में आकर कि झूठों की बस्ती कहाँ है। मैं वहीं रहता हूँ। झूठों की बस्ती। उस युवक ने कहा, हद हो गई। ऐसा नाम हमने सुना नहीं। हजारों बस्तियां हैं हमारे देश में, हजारों मोहल्ले, हजारों नगर, हजारों गांव। हमारे यहाँ तो ऐसा कभी नहीं सुना गया कि कोई झूठों की भी बस्ती हो। हमारे यहाँ तो जिस मोहल्ले में लोग एक-दूसरे की गर्दन काटने को तैयार रहते हैं, उसका नाम शांति नगर रखते हैं। और जिस मोहल्ले में हर आदमी एक-दूसरे की जेब में हाथ डाले रहता है, उसका नाम सर्वोदय नगर रखते हैं।
हमारे मुल्क में ऐसा कभी हमने सुना नहीं। क्या कहते हैं, झूठों की बस्ती। लेकिन उसने कहा, हाँ, मेरी बस्ती का तो यही नाम है। आओ तो पूछ लेना।
वह युवक लंबी यात्राओं में उस गांव में पहुँचा। उसने गांव में जाकर बहुत लोगों को पूछा कि झूठों की बस्ती कहाँ है। गांव के लोगों ने कहा, पागल हो गए हो ऐसे तो सारी दुनिया ही झूठों की बस्ती है, लेकिन नाम कौन रखेगा अपनी बस्ती का, झूठों की बस्ती।
उसने कहा, एक फकीर था काला कपड़ा पहने हुए। तो किसी ने कहा, हाँ, ऐसा एक फकीर है इस गांव में। लेकिन वह झूठों की बस्ती में नहीं, वह तो मुर्दों की बस्ती में रहता है, मरघट में रहता है। तुम्हें मालूम होता है कोई भूल हो गई। उसने कहा होगा मुर्दों की बस्ती, तुम झूठों की बस्ती के खयाल में आ गए। तुम पूछो मरघट कहाँ है। मरघट पर एक फकीर रहता है इस गांव में, जो काले कपड़े पहनता है।
|