ई-पुस्तकें >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
|
434 पाठक हैं |
माथेराम में दिये गये प्रवचन
अस्वस्थ चित्त है आदर्शों के कारण। लेकिन हम तो यही सोचते रहे हैं हजारों वर्षों से कि आदर्शों के कारण ही हम मनुष्य हैं। पशु नहीं हैं, फलां नहीं हैं, ढिकां नहीं हैं। आदर्श ही हमारे जीवन का लक्ष्य है। आदर्श जिसके जीवन में है, वही महान है। आदर्श जिसके जीवन में है, वही नैतिक, वही धार्मिक है। झूठी हैं ये सब बातें। आदर्श जिसके जीवन में है, वह कभी धार्मिक हो ही नहीं सकेगा। आदर्श खुद को धोखा देने का, सेल्फ डिसेप्शन की तरकीब है, साइंस है। और हजारों साल से आदमी अपने को धोखा दे रहा है। इस प्रवंचना को तोड़ना जरूरी है।
जिस व्यक्ति को भी स्वस्थ चित्त उपलब्ध करना हो, उसे आदर्शों के जाल से मुक्त हो ही जाना चाहिए। फिर हम जीवन के तथ्यों को जैसे वे हैं, देखने में समर्थ हो सकते हैं। फिर हम अपने भीतर उतर सकते हैं और खोज सकते हैं--हिंसा को, क्रोध को, घृणा को।
स्वास्थ्य तो आधा इससे ही उपलब्ध हो जाएगा, जिस क्षण आपके आदर्शों से चित्त मुक्त हो गया। आप एकदम सरल हो जाएंगे। एक ह्यूमिलिटी, एक विनम्रता आ जाएगी। आदर्श की वजह से एक दंभ आ जाता है--मैं अहिंसक हूँ, मैं फलां हूँ, मैं ढिकां हूँ, मैं धार्मिक हूँ—ये सब अहंकार के रूप हैं, रोग हैं।
लेकिन जो आदमी सारे आदर्शों को मन से हटा देता है, और मन की तथ्यात्मकता को, वह जो मन है--हिंसा, क्रोध, घृणा से भरा हुआ, ईर्ष्या से भरा हुआ--उसको जानता है वह एकदम विनम्र हो जाता है। एक ह्यूमिलिटि अचानक उसके ऊपर आ जाती है। वह देखता है, मैं क्या हूँ? तथ्य बताते हैं कि मैं क्या हूँ, मेरी असलियत क्या है और जिस दिन वह पूरी शांति से और पूरी सरलता से, पूरी विनम्रता से इन तथ्यों को देखता है--वह देखना ही, वह दर्शन एक छलांग बन जाती है--एक जप, उसके जीवन में आ जाता है, एक क्रांति उसके जीवन में आ जाती है।
|