ई-पुस्तकें >> अपने अपने अजनबी अपने अपने अजनबीसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
|
7 पाठकों को प्रिय 86 पाठक हैं |
अज्ञैय की प्रसिद्ध रचना - सर्दियों के समय भारी हिमपात के बाद उत्तरी ध्रूव के पास रूस में अटके दो लोगों की कहानी।
मुझे इतना अकेला करके... अकेला होना - मृत्यु के साथ अकेला होना - मृत्यु के सम्मुख अकेला होना - मृत्यु में अकेला होना - इस चरम अकेलेपन और स्वयं मृत्यु में क्या अन्तर है? क्या हुआ अगर ईश्वर चोरी से देख रहा है उस अकेली मृत्यु को - क्या ईश्वर भी मरा हुआ नहीं है?
योके ने सहारा लेने को हाथ बढ़ाया। लेकिन किसी तरफ कोई सहारा नहीं था और पलँग की ओर बढ़ना सम्भव नहीं था। वह असहाय-सी वहीं फर्श पर बैठ गयी।
वह थोड़ी देर की बात भी हो सकती है और दो घंटों की भी कि योके यों फर्श पर बैठी रही। अंगों की चुनचुनाहट ने उसे सचेत किया। वह किसी तरह उठकर खड़ी हुई और लड़खड़ाती हुई दरवाजे की चौखट तक आयी, वहाँ चौखटे के सहारे खड़ी होकर उसने सुन्न पड़ी टाँगों को सीधा किया और कुछ सँभलकर अपने पीछे दरवाजा धीरे से बन्द कर दिया। न जाने क्यों उसका ध्यान कमरे में टँगे हुए बड़े शीशे की ओर गया - खिड़की इतनी देर तक खुली रहने से उस पर नमी जम गयी थी और वह धुँधला होकर कोहरे की चादर-सा जान पड़ा था। योके ने हथेली से मलकर उसमें झाँकने लायक जगह बनायी; पहले अपनी परछाईं के पैरों की ओर देखा और फिर धीरे-धीरे नजर उठाती हुई परछाईं की आँखों से आँखें मिलायीं और एकाएक मुड़ गयी।
एक नए निश्चय से भरकर उसने सेल्मा के कमरे का दरवाजा खोला, कम्बल सेल्मा की देह पर उढ़ाया और उसी में लपेटकर देह को बाँहों में उठा लिया। क्षण-भर उसे भ्रम हुआ कि उसने कम्बल सूना ही उठा लिया है। लेकिन पलँग पर कुछ नहीं था, सेल्मा का भार ही इतना रह गया होगा। दरवाजे की ओर बढ़कर उसने कोहनी से ठेलकर उसे खोला और बाहर निकल आयी।
नहीं, खोदने की कोई जरूरत नहीं थी - अभी वह प्रयत्न भी व्यर्थ था। अभी केवल बर्फ; अनन्तर जब बर्फ पिघलेगी तब कब्र खोदकर दफनाना होगा, लेकिन अभी कुछ नहीं।
योके ने लाश को वहीं बर्फ पर लिटा दिया, फिर अन्दर जाकर एक डोल ले आयी और उसी से खोदकर बर्फ में खाई बनाने लगी। थोड़ी देर बाद उसने लाश को उसमें लिटा दिया और डोल भरकर बर्फ उठायी कि ठिठक गयी।
|