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अपने अपने अजनबी

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9550
आईएसबीएन :9781613012154

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अज्ञैय की प्रसिद्ध रचना - सर्दियों के समय भारी हिमपात के बाद उत्तरी ध्रूव के पास रूस में अटके दो लोगों की कहानी।


कि सहसा वह बड़े जोर से चौंकी। दरवाजा खटखटाया जा रहा था।

क्या करने आया है यान रात में? सेल्मा का दिल एकाएक जोर से धड़कने लगा और वह एक कुर्सी का हत्था पकड़कर खड़ी हो गयी।

दरवाजा फिर खटखटाया गया। अबकी बार जोर से।

सेल्मा भीतर गयी। एक नजर चारों ओर दौड़ाकर उसने अँगीठी के पास रखी हुई लोहे की सलाख उठायी और फिर बरामदे में आ गयी।

दरवाजा तीसरी बार खटखटाया गया। सेल्मा की पकड़ सलाख पर और कड़ी हो आयी। उसे पीठ की ओट करते हुए उसने बाएँ हाथ से खिड़की की सिटकनी खोली और पूछा, 'क्या है?'

यान ने कहा, 'दरवाजा खोलो।'

'क्या काम है - इतनी देर रात को ?'

यान ने मानो कुछ चौंकते हुए फिर कहा, 'दरवाजा खोलो, सेल्मा।' फिर थोड़ी देर रुककर कहा, 'सेल्मा, मैं माफी चाहता हूँ। गुस्से से मैं अवश हो गया था उसके लिए मैं शर्मिन्दा हूँ। मैंने सोचकर देखा है कि तुम्हारा दोष नहीं है।'

सेल्मा थोड़ी देर असमंजस में रही। क्या यह दरवाजा खुलवाने का ही ढोंग है? लेकिन फिर मुट्ठी में पकड़ी हुई लोहे की छड़ से उसके लड़खड़ाते हुए आत्मविश्वास को टेक मिल गयी और उसने दरवाजा खोल दिया।

यान ने भीतर आकर कहा, 'तुमने मेरी जान लेनी चाही है लेकिन सकी नहीं - सकती नहीं। मैं चाहूँ तो तुम्हारी जान ले सकता हूँ, लेकिन मैं चाहता नहीं हूँ।'

थोड़ी देर दोनों चुप रहे। सेल्मा का दिल फिर धड़कने लगा था। लेकिन स्थिति उसकी समझ में नहीं आ रही थी, इसीलिए वह पूरी तरह डर भी नहीं पा रही थी। असमंजस में ही उसने अपने को सँभाल लिया और वह सतर्क भाव से यान की ओर देखती रही।

यान ने कहा, 'मरेगा तो शायद हम दोनों में से कोई नहीं - तुम्हारी हरकत के बावजूद अभी तो नहीं लगता कि मैं मरनेवाला हूँ। लेकिन अगर सचमुच यह बाढ़ ऐसी ही इतने दिनों तक रही कि मैं भूखा मर जाऊँ, तो तुम बचकर कहाँ जाओगी और अगर पीछे ही मरोगी, तो तुम समझती हो कि वैसे अकेले मरने में कोई बड़ा सुख है? बल्कि अकेली तो तुम अब भी हो, जबकि मैं नहीं हूँ। और शायद मर ही चुकी हो - जबकि मैं अभी जिन्दा हूँ।'

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