ई-पुस्तकें >> अपने अपने अजनबी अपने अपने अजनबीसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
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अज्ञैय की प्रसिद्ध रचना - सर्दियों के समय भारी हिमपात के बाद उत्तरी ध्रूव के पास रूस में अटके दो लोगों की कहानी।
दिन छिपनेवाला था कि बरामदे की सीढ़ी पर सेल्मा ने आहट सुनी। तो यान आया है। दरवाजा उसने नहीं खोला, खिड़की तक आकर प्रश्न की मुद्रा में खड़ी हो गयी।
यान ने बिना उसकी ओर देखते हुए और बिना भूमिका के पूछा, 'गोश्त है?'
सेल्मा एकाएक तिलमिला गयी, और अपने को वश में करते हुए बोली, 'हाँ, है। दाम ले आओ।'
यान ने और भी संक्षिप्त भाव से कहा, 'हैं।'
सेल्मा ने भीतर से लाकर एक हत्थेवाले तश्त में रखा हुआ गोश्त यान की ओर बढ़ा।
यान ने पूछा, 'कितने?'
सेल्मा ने दाम बताते हुए कहा, 'इसी में रख दो।'
यान ने एक हाथ से गोश्त उठा लिया था और दूसरा जेब में डाला था। सेल्मा की बात सुनकर एकाएक उसने आँखें उठाकर सेल्मा के चेहरे की ओर देखा और फिर पूछा, 'कितने?'
सेल्मा ने रुखाई से कहा, 'सुना नहीं?'
यान ने हाथ जेब में से निकाला। उसकी मुट्ठी बँधी हुई थी। मुट्ठी भर सिक्के थे। एकाएक उसने मुट्ठी उठाकर सिक्के बड़ी जोर से सेल्मा के मुँह पर दे मारे। बोला, 'शायद कुछ कम हैं। लेकिन तुम चाहो तो गोश्त में से उतना कम करके दे सकती हो। पैसे मेरे पास और नहीं हैं।'और कहते-कहते उसने दूसरे हाथ का सामान वापस सेल्मा की ओर बढ़ा दिया।
सेल्मा की आँखें एकाएक अवश भाव से बन्द हो गयी थीं। सारा इच्छा-बल लगाकर उसने आँखें खोली और दर्द को दबाते हुए हाथ बढ़ाकर सामान ले लिया एक बार उसका मन हुआ था कि बाकी के पैसे छोड़ दे। लेकिन इस तरह वह नहीं छोड़ेगी, कभी नहीं छोड़ेगी! विरोध - एकमात्र ध्रुव-जीवन का सहारा...
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