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अमृत द्वार
अमृत द्वार
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9546
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आईएसबीएन :9781613014509 |
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353 पाठक हैं
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
शास्त्र के अध्ययन से आत्मज्ञान का कोई संबंध नहीं है। आत्मज्ञान का संबंध साधना है, अध्ययन से नहीं है। आत्मज्ञान का संबंध और ज्ञान के लिए नहीं कह रहा हूं। इंजीनियरिंग पढ़नी हो, डाक्टरी पढ़नी हो शास्त्रज्ञान से हो जाएगा। पर स्व के संबंध में कोई सूचना पानी हो तो शासन से हो जाएगी। स्व के संबंध में बोध शास्त्र से नहीं हो सकता। शास्त्र तो विचार को परिपक्व कर देंगे। आत्मज्ञता तो विचार के टूटने से होता है। शास्त्र तो बुद्धि को एक विशिष्ट तर्क भर देंगे।
जैसे सोवियत रूस है, चालीस वर्षों से अपने बच्चों को ईश्वर और आत्मा विरोधी पढ़ाए। चालीस वर्षों में सोवियत रूस के बीच करोड़ लोग--ईश्वर और आत्मा नहीं है, ऐसा उनके ज्ञान हो गया। चालीस वर्ष के प्रचार प्रोपेगेंडा ने सोवियत रूस में यह स्थिति पैदा कर दी कि बीस करोड़ लोगों को यह ज्ञान हो गया कि आत्मा और ईश्वर नहीं है। इसको ज्ञान चाहिए? इसको ज्ञान नहीं कह सकते। यह केवल विचार का परिपक्व कर देना हो गया एक पक्ष में।
और आप सोचते हैं, आपको आत्मा का ज्ञान हो गया है तो आप भी गलती में हैं। आपका मुल्क भी पांच हजार वर्ष से प्रचार कर रहा है कि आत्मा है, आत्मा है, ईश्वर है। उस प्रोपेगेंडा से प्रभावित हैं। एक प्रोपेगेंडा से वे प्रभावित हैं, एक प्रचार उनके चित्त में बैठ गया, एक प्रचार आपके चित्त में बैठा है। दोनों ही प्रचार हैं। प्रचार से एक विचार परिपक्व हो जाता है, अनुभव नहीं होता है। मेरा मानना है, अगर उनको सत्य का अनुभव करना है तो अपना प्रचार छोड़ देना पडेगा। आत्म-सत्य का अनुभव करना होगा तो अपना प्रचार छोड़ना पडे़गा। प्रचार प्रभावित है हमारे ऊपर। सब बाहर के प्रभाव छोड़ देने होंगे। निष्प्रभाव स्थिति में जो स्वयं में भीतर है उसका जागरण होता है। प्रभाव नहीं, क्योंकि प्रभाव तो बाह्य है। प्रभाव का अभाव--उसमें स्वयं को बोध अनुभव होता है।
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