लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

353 पाठक हैं

ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

बुद्ध दो तरह के प्रयोग करते थे ध्यान का। एक तो वह कहते थे बैठकर ध्यान कर और एक को वह कहते थे चलते हुए ध्यान। वह भिक्षुओं को कहते थे एक घंटा बैठकर ध्यान करो फिर एक घंटा चलते हुए ध्यान करो। बैठकर एक बात है ध्यान की ज्यादा आसान है। चलकर ध्यान थोड़ा कठिन है। एक्शन के साथ क्रिया हो रही है और ध्यान। लेकिन युवक के लिए चलकर ध्यान करना आसान है बजाय बैठकर। तो मेरी दृष्टि यह है कि मेरी मिलेट्री ट्रेनिंग युवक की हो और उसकी मिलेट्री ट्रेनिंग का अनिवार्य सेटल हिस्सा मेडिटेशन हो। वह चले, खेले, दौडे़।

उन्होंने जापान में एक व्यवस्था खोज ली थी। जापान में जैसे यहाँ क्षत्रिय होते थे वैसे वहाँ समुराई जापान में क्षत्रियों का वर्ग था। उन्होंने ध्यान को तलवार बाजी के साथ जोड़ रखा था। तलवार चलाना सिखाते और ध्यान के साथ तलवार चलाओ ध्यानपूर्वक। तो समुराई दो काम कर लेता था। वह तलवार चलाना सीखते सीखते ध्यानस्थ होना भी जान जाता था। और युद्ध के मैदान में समुराई का कोई मुकाबला नहीं था दुनिया में क्योंकि वह जितना शक्तिशाली होता था, जितना मौन होता था, जितना निर्विचार होकर लड़ता था उतना दूसरा आदमी तो निर्विचार भी नहीं था शांत भी नहीं था, वह पच्चीस बातें भी सोच रहा था। समुराई से जीतना मुश्किल था। और धीरे-धीरे तो यह हालत पैदा हुई जापान में कि अगर दो समुराई में कभी तलवार बाजी हो जाए तो कोई नहीं जीत पाया था जीतना ही मुश्किल था किसी का। क्योंकि वह दोनों ही उतने शांति से इतना मौन, इतने मैडीटेटिविली लड़ते थे कि मुश्किल मामला था कि कोई जी जाता।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book