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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

प्रश्न-- अस्पष्ट

उत्तर-- हमेशा सारे ढंग ही वैज्ञानिक हैं, अगर ढंग हैं तो। नहीं तो ढंग ही नहीं है। यह जो युवक है आज आपके पास, मेरी दृष्टि में भारत के इतिहास में पहली दफा युवक उस हालत में पहुँचा है कि धार्मिक हो सकता है, इसके पहले तो कभी हो ही नहीं सकता। क्योंकि न तो युवक में विद्रोह था आज के पहले, और जिस युवक में विद्रोह ही नहीं है वह धार्मिक नहीं हो सकता। धार्मिक होने के लिए बड़ी विद्रोह क्षमता चाहिए क्योंकि धार्मिक होने का मतलब यह है कि वह सत्य की खोज में जाता है। और सत्य की खोज में जाने का मतलब यह है कि आपके समाज ने हजार झूठ थोपे हैं जिनको वह तोडे़गा, तो वह सत्य की खोज में जाने वाला है।

मेरी दृष्टि में भारत के भाग्य में एक बहुत कीमती क्षण आया है, अगर वह लड़कों का उपयोग कर सके तो ये लड़के धार्मिक हो सकते हैं। आपका पुराना लड़का तो धार्मिक हो नहीं सकता था, वह जी--हजूर था। उसमें इनकार करने की ताकत भी नहीं थी। और मेरी यह भी समझ है कि जिस बच्चे में इनकार की ताकत नहीं है इसके हाँ का कोई मूल्य नहीं है। जो नो नहीं कह सकता तो उसके यस का दो कौडी मूल्य है। तो उसके यस में कोई जान नहीं है। आज पहली दफा बच्चे ने कहा है, तो--पच्चीस चीजों पर और इस बच्चे को अगर हम राजी कर सके और यह कह सके तो इस बच्चे के यस का अर्थ होगा, पूरे मुल्क को बदल देने वाला होगा।

आज तक हिंदुस्तान में जवान था ही नहीं। बूढे़ थे और बूढ़ों के अनुगत थे, जवान नहीं थे। जवान की कोई पीढ़ी नहीं थी हिंदुस्तान में। बूढ़ा आदमी था और बूढ़े का आज्ञाकारी जवान है। जवान की पीढ़ी विकसित हुई है अभी। यानी अब हमको लगता है कि जवान कुछ अलग है। उसकी अपनी हैसियत खड़ी हो रही है। और वह जो हमें उसमें दिखायी पड़ रहा है उसकी गैर आध्यात्मिकता, वह गैर आध्यात्मिकता नहीं है। आपके सारे मूल्य असफल सिद्ध हो चुके हैं। आपने जितनी वैल्यूज आज तक खड़ी की थीं वह सब असफल हो गयी हैं। बाहर जाने वाली शक्तियां जग रही हैं। अभी आँख खुलने का वक्त है, अभी आँख बंद करने का उसका वक्त भी नहीं है। अभी वह एक कोने बैठे नहीं रह सकता, अभी वह सारी एक्टिविटी उसके भीतर मचल रही है। तो मेरी अपनी दृष्टि यह है-- मेडीटेशन इन एक्शन, एक नयी प्रक्रिया ध्यान की विकसित होनी चाहिए, और हो सकती है, कठिनाई नहीं है कि हम एक्शन के साथ ध्यान को जोड़ें। जैसे-- लड़के कवायद कर रहे हैं, मिस्ट्री की कवायद हो रही है तो कवायद करते वक्त इस भांति उनको समझाया और सिखाया जा सकता है कि वह पूरी कवायद पर अटेंशन दें, वह सिर्फ कवायद ही कर रहे हैं उनका मन और कुछ भी नहीं कर रहा है सिर्फ एक्शन रह जाए।

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