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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

प्रश्न--अश्नील साहित्य क्या पहले नहीं था।

उत्तर--अश्लील साहित्य नहीं था, उनके पास वेश्याएं थी। मेरा मतलब यह है कि उस समाज के पास जिस समाज की आप बात कहते हैं, आज भी लोग उस समाज के जिंदा हैं जंगलों में आज भी उस समाज के आदमी के मन में अश्लीलता नहीं है, सेक्सुअलिटी नहीं है, सेक्स है, सेक्सुअलिटी नहीं है। पर्वर्शन नहीं है और एक आदिवासी स्त्री का स्तन आप छूकर पूछ सकते हैं कि यह क्या है तो वह कहेगी, दूध पिलाती हूं इससे बच्चे को। बात खत्म हो गयी। इससे ज्यादा कोई सवाल नहीं है, बात खत्म हो गयी। लेकिन अभी सभ्य स्त्री की स्तन की तरफ आप देखें तो बेचैनी शुरू हो गयी। वह भी बेचैन है कि आप देख न लें और आप भी बेचैन हैं कि आप देख लें और वह छिपा भी रही है आपसे। वह छिपा भी रही है कि इसे छिपा ले। और इस तरह के कपड़े भी पहन रही हैं कि वह दिखायी पड़े यह पर्वर्शन है। वह एक आदिवासी स्त्री का पर्वर्टेड माइंड नहीं है।

प्रश्न--चौदह साल के बच्चों की नग्नता।

उत्तर--आपकी जो नग्नता के प्रति धारणा है वह गयी। आपके घर में अपने बाथरूम में सारे लोग घर का सारा परिवार नंगा होकर नहा सकता है और किसी को भी खयाल भी नहीं न आए। नदी के घाट पर आप नंगे स्नान कर सकते हैं, किसी को खयाल भी न आए। और होना नहीं चाहिए। समाज इतना सभ्य इतना सुसंस्कृत तभी माना जाएगा जब वह नग्न खड़े आदमी के प्रति भी साधारण भाव रखता हो। नहीं तो सुसंस्कृत नहीं है वह आदमी, अनकल्चर्ड है, वह आदमी असंस्कृत है। यह तो चौदह साल एक दफा हो जाए तो बड़े बूढ़े के लिए प्रालब्ध नहीं रहा। कपड़े आप पहनेंगे शौक से, जब जरूरत है। नहीं तो कोई जरूरत नहीं है। अगर नहीं जरूरत हो, तो आप नंगे बैठने का अपना आनंद है, अपना सुख है, अपना अर्थ है। किसी को नंगा बैठना चाहिए, यह मैं नहीं कहता लेकिन नंगा बैठने में कोई खतरा नहीं है। वह स्थिति तो मन की बननी चाहिए। और वह बच्चों को अगर नंगा रख सके तो वह स्थिति क्योंकि बच्चे कल बड़े होंगे। जो बच्चा चौदह साल तक नंगा घूम सका वह बच्चा चालीस साल का होकर बगीचे में नंगा बैठकर काम कर सकता है। उसको कोई परेशानी नहीं होने वाली है। परेशानी तो इसलिए हो रही है कि चौदह साल का, चार साल का तभी, नंगे मत हो जाना, जल्दी कपड़ा पहनो। मुसीबत तो उसको एक ऐसा फियर काम्पलैक्स पैदा कर दिया कि कपड़े नहीं पहनना, मतलब कोई ऐसा भारी अपराध है कि तुम गड़बड़ न करो। नग्नता का अपना सुख है, अपना आनंद है, अपना स्वास्थ्य है। और सच तो यह है कि जब तक हम मनुष्यता को फिर से नग्न रहने की थोड़ी व्यवस्था नहीं करते तब तक मनुष्यता का पूरा स्वास्थ्य वापस नहीं लौटेगा। पूरा स्वास्थ्य कभी वापस नहीं लौट सकता। कपड़े पहन लेता है आदमी तो वह भूल ही जाता है शरीर की फिकर। कपड़े उसको काफी ऐसा दिखने लगते हैं कि ठीक था। अभी आज हम सारे लोग को नंगा खड़ा करें तो आपको पहली दफा अपने शरीर का खयाल आएगा कि यह क्या बात है, यह कैसा शरीर है। यह शरीर बर्दाश्त करने जैसा नहीं होगा, अगर आप नंगे खड़े हों।

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