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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

प्रश्न--क्या गांधीजी इन सब बातों को जानकर ऐसा कह रहे हैं?

उत्तर--गांधी जी की कांसेस, नीयत पर जरा भी शक नहीं है। गांधी जानकर ऐसा कर रहे हैं, ऐसा मैं नहीं मानता, लेकिन गांधी जी उसी लंबी साजिश में भूले हुए हैं जो चल रही है। और गांधी उसके सहयोगी हैं, उससे अलग नहीं हैं जरा भी। और हिदुस्तान जब तक गांधी जी से मुक्त नहीं होता तब तक दरिद्रता से मुक्त नहीं हो सकता है। गांधी जी को मैं गाली नहीं देता। गांधी जी को मैं बुरा कहता नहीं। गांधी जी एकदम भले आदमी हैं। और शायद बहुत भले हैं इसलिए उस लंबी बेवकूफी के हिस्सेदार हो गए हैं। क्योंकि वह जो पांच हजार साल की लंबी परंपरा है, वह इतने भले आदमी हैं कि उस परंपरा के वे हिस्सेदार हैं, उसके भागीदार हैं।

प्रश्न-- क्या मनु महाराज इसके जिम्मेवार हैं।

उत्तर-- मनु को हुए इतना लंबा फासला हो गया कि मनु के बाबत कुछ कहना मुश्किल है। लेकिन मनु के कुछ शब्द ऐसे हैं कि ऐसा लगता है कि मनु हिंदुस्तान में ब्राह्मणों का राज्य कायम करने में पूरी तरह सचेष्ट हैं। उनके शब्द ऐसे हैं। उनकी बात ऐसी है वह निश्चित रूप से शूद्र को खड़ा कर रहे हैं और ब्राह्मण को सिर पर बिठा रहे हैं। और वह सारा का सारा वर्ग विभाजन और वर्ण व्यवस्था खड़ी कर रहे हैं। तो मनु तो निश्चित ही हिंदुस्तान में एक विप्र साम्राज्य खड़ा करने का पूरा इंतजाम कर रहे हैं।

प्रश्न--कैटेगरी कर रहे हैं।

उत्तर--कैटेगरी लेकिन आज बहुत मुश्किल हो जाता है क्योंकि चार हजार साल पहले, तीन हजार साल पहले कब मनु हुए, आज बहुत मुश्किल हो जाता है। लेकिन जो भी मनु ने कहा है-- इधर अभी नीत्शे ने मनु की बहुत प्रशंसा की, सिर्फ इसलिए कि नीत्शे को अपनी आवाज की ध्बनि मनु में मिली। नीत्शे ने कहा है, मनु है दुनिया का सबसे बडा लाग्यर क्योंकि उसने यह बताया है, कि कुछ लोग बड़े हैं और सब लोग छोटे हैं। तो नीत्शे ने तारीफ की की। मनु की तारीफ करने वाला इधर तीन सौ वर्षो में सिर्फ नीत्शे है।

कोई आदमी तारीफ नहीं करेगा, लेकिन नीत्शे ने तारीफ की। और नीत्शे के आधार पर खडा हुआ फासिज्म पूरा का पूरा। तो मनु ने एक तरफ का फासिज्म खड़ा किया, ब्राह्मणों का। आज कहना मुश्किल है वह कितना सचेष्ट था कि आज तीन हजार साल के बाद बहुत मुश्किल उसके व्यक्तित्व के बाबत हम बहुत नहीं जानते। लेकिन मनुस्मृति में जो शब्द हैं वह ऐसा बताते हैं। जैसा वह कहेगा-- एक ब्राह्मण को मार डालना एक हजार गायों को मारने का पाप है। एक गाय को मारना एक हजार साधारण मनुष्यों को मारने का पाप है। लेकिन एक शूद्र को मारने पर सिर्फ एक दिन का भोजन दे देना काफी है। यह जो माइंड है, यह जो फर्क कर रहा है, बड़ी अजीब बात है। एक शूद्र को मारने पर एक गऊ के मारने का भी पाप नहीं है। लेकिन एक ब्राह्मण को मारना। एक ब्राह्मण अगर शूद्र की औरत को ले आए तो क्षम्य है लेकिन ब्राह्मण की औरत को अगर शूद्र ले जाए तो जन्म-जन्म तक क्षम्य नहीं है। यह जो माइंड है न, नहीं जानकार होने के बाबत कुछ करना मुश्किल है लेकिन मनु का माइंड बहुत साफ कांसपिरेटर का माइंड है, षडयंत्र का माइंड है वह।

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