ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
प्रश्न--अस्पष्ट
उत्तर--मुश्किल यह है कि जब आप दे रहे हैं तब आप इसलिए दे रहे हैं कि चार लोग देख लें, चार लोगों को पता चल जाएं और अगर यह आपकी कंडीशन नहीं है तो उसको मैं दान नहीं कह रहा हू, उसको मैं प्रेम कह रहा हूं। फिर तो आप यह चाहेंगे कि कोई देख न ले। कोई क्या कहेगा कि दो पैसे भी नहीं हैं एक आदमी के पास? कोई कहेगा क्या? कि एक आदमी ने भीख मांगी और इस आदमी ने दो पैसे दिए। तब आप डरेंगे कि कोई देख न ले, अकेले में चुपचाप दे देंगे। किसी को कहना मत। पता न चल जाए किसी को। मैं तो कुछ कर ही नहीं पाया, तुम मांग रहे हो। दो पैसे मैं देता हू यह देना हुआ। और जनरल कंडीशन यह है कि आप प्रतीक्षा कर रहे हैं कि चार लोग जान लें, या अखबार में खबर छप जाए कि इस आदमी ने इतना दिया है। यह मंदिर का पत्थर लग जाए कि इस आदमी ने इतना दिया है, यह नाम खुद जाए। नहीं, यह बिलकुल जनरल कंडीशन है। दान देने वाले के माइंड की यह स्थिति है। तब तो दान चल रहा है हजारों साल से और दुनिया जरा भी कुछ अच्छी नहीं बन पाती।
तो मेरा कहना यह है कि प्रेम बढ़ाना चाहिए, दान की इसलिए बकवास बंद होनी चाहिए। उस प्रेम से जो दान फलित होगा, वह बात ही और है। उसमें फर्क इतना ही है कि जैसे एक नकली फूल आप ले आएं बाजार से और असली फल पैदा हुए। उतना ही फर्क है उन दोनों दान में। तो एक की मैं प्रशंसा करता हूं और एक की निंदा करता हूं। तो उनके बीच का फासला बहुत है, फासला बहुत है।
प्रश्न--कुछ स्वर्ग मिल जाए मृत्यु के बाद या अगले जन्म को ऊंचा कर लिया इस प्रकार?
उत्तर--एक आदमी किसी को दान करता है तो यह सचेतन इच्छा नहीं है उसकी। न उसके इस बात की कोई साजिश का वह हिस्सेदार है कि यह समाज की व्यवस्था बनी रहे। नहीं, यह नहीं कह रहा हूं। समाज का आम जनसमूह जो करता है उसे तो कुछ भी स्पष्ट नहीं है कि वह क्या कर रहा है। समाज का जो आम जनसमूह है वह तो किसी चीज के प्रति अवेयर नहीं है कि वह क्या कर रहा है। लेकिन समाज के ढांचे के जो निर्माता हैं, उसके जो नीति- नियंता हैं, वे पूरी तरह से होश में सब कुछ व्यवस्था कर रहे हैं। जिन लोगों ने यह व्यवस्था की कि अगर पति मर जाए तो पत्नी को सती हो जाना चाहिए। उन्होंने यह व्यवस्था नहीं कि कि अगर पत्नी मर जाए तो पुरुष को भी उसके पीछे मर जाना चाहिए।
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