ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
तो दान का बोध ही गलत है। प्रेम से दान निकलता है, वह बात ही अलग है। वह इतना ही सहज है कि उसका कभी भी नहीं चलता। उसकी कोई रेखा ही नहीं छूट जाती कुछ। बल्कि प्रेम से दान निकलता है, हमेशा प्रेमी को लगता है कि कुछ कर पाया।
एक मां से पूछें कि उसने अपने बेटे के लिए क्या किया। वह कहेगी मैं कुछ भी नहीं कर पायी। जहां पढ़ाना था, पढ़ा नहीं पायी, जो खाना खिलाना था वह खिला नहीं पायी, जो कपड़ा पहनाना था वह मैं नहीं पहना पायी। मैं लड़के के लिए कुछ भी नहीं कर पायी। और एक संस्था के सेक्रेटरी से पूछें कि उसने संस्था के लिए क्या-क्या किया? तो वह हजार फेहरिस्त बनाए हुए खडा है कि हमने यह किया, हमने यह किया, हमने यह किया। जो उसने नहीं किया उसका भी दावा है कि हमने किया। और मां ने जो किया भी, उसकी भी वह दावेदार नहीं है। वह कहेगी कि मैं कुछ भी नहीं कर पायी।
तो प्रेम के पीछे कभी भी यह भाव नहीं छूट जाएगा कि मैंने कुछ किया। और जिस दान में यह भाव रहता है कि मैंने कुछ किया, उसको मैं पाप कहता हूं। वह अहंकार का ही पोषण है। तो प्रेम से जो दान निकलेगा, उसकी तो बात ही और है। उसको तो दान कहने की जरूरत ही नहीं है। तो वह निकलता ही रहेगा। प्रेम तो स्वयं ही दान है। लेकिन बिलकुल ही अन्यथा बात है। और यह दान-धर्म की हम इतनी प्रशंसा करते हैं कि दान दो तो पुण्य होगा, दान दो तो स्वर्ग मिलेगा, दान दो तो भगवान तक पहुँच जाओगे, यह शरारत की बात है। इससे कोई मतलब नहीं है। यह उस आदमी के अहंकार का पोषण है। और इस भांति जो दान दे रहा है वह दान-वान कुछ नहीं दे रहा है। वह फिर शोषण कर रहा है, वह अपने स्वार्थ का फिर इंतजाम कर रहा है। आपकी दीनता-दरिद्रता उसे कहीं भी नहीं छू रही है। बल्कि आप दीन और दरिद्र हैं, इससे वह खुश है। क्योंकि उसे दानी बनने का एक अवसर आप जुटा रहे हैं। सड़क पर एक भिखारी आपसे दो पैसे मांगे, अगर आप अकेले हैं तो आप इंकार कर देंगे, अगर चार आदमी हैं तो आप दे देंगे। क्योंकि चार आदमी देखते हैं कि दो पैसा दिया। चार आदमी के सामने भिखारी को इंकार करना कि नहीं देंगे आपके अहंकार को चोट लगती है। अकेले में आप दुत्कार देंगे। इसलिए भिखारी प्रतीक्षा करता है, अकेले आदमी से नहीं मांगता है, चार आदमी हों तो पकड़ लेता है। क्योंकि इन तीन के सामने आपके अहंकार का उपयोग करता है। अब जरा मुश्किल है, इंकार करना।
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