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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

हम सीख कर बैठ गए हैं। एक शब्द को भी भुलाना चाहें तो भुलाना कठिन है और असंभव है। बल्कि जिस शब्द को आप भुलाना चाहें वह और भी स्मरण में वापस लौटने लगेगा। की होगी आपने भी कभी कोशिश। किसी चेहरे को आप भुला देना चाहते हैं। किसी स्मृति को भुला देना चाहते हैं और परेशानी में पड़ जाते हैं। जितना भुलाना चाहते हैं, उतना स्मृति वापस आने लगती है। आपको खयाल नहीं है कि भुलाने की कोशिश रिपीटीशन है। भुलाने की चेष्टा में पुनरुक्ति शुरू हो गयी। आप बार-बार भुलाना चाहते हैं किसी चीज को, उसका बार- बार आपको स्मरण करना पड़ता है और बार-बार स्मरण करने से वह और मजबूत होती चली जाती है।

एक फकीर के पास एक युवक गया था और उसने कहा, मुझे कोई मंत्र दे दें मैं सिद्ध करना चाहता हूं। फकीर ने बहुत समझाया कि मेरे पास कोई मंत्र नहीं, कोई सिद्धि नहीं, लेकिन युवक माना नहीं। पैर पकड़ लिए। जितना इंकार किया फकीर ने, उतने ही पैर पकड़े। आदमी की आदत ऐसी है, जहां इंकार हो, वहां उसका आकर्षण बढ़ता है। जहां कोई बुलाए, वहां समझता है, बेकार है, कोई सार नहीं है। जिस दरवाजे पर लिखा है, यहां मत झांको, वहां उसका मन झांकने का होता है। जहां लिखा है, यहां झांकते हुए जरूर जाना वहां सोचता है, कुछ व्यर्थ होगा। झांकने की कोई जरूरत नहीं है।

फकीर इंकार करने लगा। जितना इंकार करने लगा उतना उसका आकर्षण बढ़ने लगा कि जरूर कोई बात है, जरूर कोई बात है, जरूर कोई बात है; आखिर फकीर परेशान हो गया, उसने एक कागज पर लिख कर मंत्र दे दिया और कहा, इसे ले जाओ, रात के अधेरे में स्थान करके एकांत में बैठ जाना। पांच बार इस मंत्र को पढं लेना। तुम जो चाहोगे, वह सभी तुम्हें मिल जाएंगी। वह युवक तो भागा। वह भूल भी गया कि धन्यवाद देना भी कम से कम जरूरी था। वह सीढियां उतर ही रहा था तब उससे फकीर ने कहा, जरा ठहरो, एक शब्द बताना भूल गया। पढ़ना तो मंत्र, लेकिन बंदर का स्मरण मत करना उस समय, अन्यथा सब गड़बड़ हो जाएगा।

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