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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

शब्द को कैसे छोड़ा जा सकता है? बड़ी कठिनाई है। चौबीस घंटे हम शब्दों में जीते हैं, सोते हैं तो शब्दों में, जागते हैं तो शब्दों में, एक छोटा सा शब्द, और हमारा हृदय खिलकर एक फूल बन जाता है। और एक छोटा सा शब्द, और हमारा क्रोध का जागरण हो जाता है। हृदय एक अंगार बन जाता है। एक छोटा सा शब्द और हम दुखी हो जाते हैं। एक छोटा सा शब्द, और हम आकाश में मरने लगते हैं। हमारा सारा जीवन शब्दों का हैं, सारा जीवन शब्दों का है। जागते हैं तो शब्दों से, सोते हैं तो शब्दों से। रात भर शब्द फिर शुरू हो जाता है। जैसे किसी झील के ऊपर छा गयी हो, पत्ते ही पत्ते फैल गए हों, पूरी झील ढंक गयी हो, कुछ दिखायी न पड़ता हो ऐसे ही शब्दों ही शब्दों में हमारी पूरी चेतना ढंक गयी है, और कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता है, सिवाय शब्दों के कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता है। आप भीतर जाइए और शब्द ही शब्द मिलेंगे। इन शब्दों के छूटे बिना कोई स्वयं को नहीं जान सकता है। लेकिन हमारी सारी शिक्षा शब्दों की शिक्षा है। सारा समाज शब्दों पर जीता है। सारा जीवन शब्दों की संपदा का व्यापार करता है। निःशब्द की तो कोई संभावना नहीं, कोई मौका नहीं। शून्य हो जाने को, शब्द से मुक्त हो जाने का कोई अवसर नहीं है। जब तक यह अवसर हम न जुटा लें, तब तक हमें पता नहीं चल सकता कि मैं कौन हूं? जीवन क्या है?

यह कैसे होगा? दो बातें समझ लेनी जरूरी हैं। पहली बात--शब्द को हम किसी भांति सीखते हैं? इस सूत्र को समझ लेना जरूरी है, तो हम यह भी सीख सकते हैं कि शब्द को कैसे भुला जा सकता है।

एक सुबह बुद्ध अपने भिक्षुओं के बीच बोलने गए लोगों ने देखा वे अपने हाथ में एक रेशमी रूमाल लिए हुए हैं। वे जाकर बैठ गए। बैठकर उन्होंने रूमाल खोला, उसमें एक गांठ लगायी, फिर दूसरी गांठ लगाई, फिर तीसरी गांठ लगाई, फिर और गांठें लगायीं। पूरा रूमाल गांठों से भर गया। भिक्षु चुपचाप देखते रहे कि वे क्या कर रहे हैं। फिर उन्होंने कहा, भिक्षुओं, मैं रूमाल लेकर आया था, और उसमें कोई गांठ न थी। अब रूमाल में गांठें ही गांठें लग गयी हैं। मैं तुमसे पूछता हूं, यह वही रूमाल है, या दूसरा रूमाल है? एक भिक्षु ने कहा कि एक अर्थ में तो वही रूमाल है क्योंकि गांठ लगने से रूमाल में कोई खास फर्क नहीं पड़ गया है।

और एक अर्थ में रूमाल में बदलाहट हो गयी है। पहला रूमाल सीधा साफ था, इसमें गांठें पड़ गयी हैं।

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