लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

353 पाठक हैं

ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

हमारे पास क्या है? ज्ञान के नाम पर हमारे पास शब्दों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। किन्हीं के पास हिंदुओं के शब्द हैं, किन्हीं के पास मुसलमानों के शब्द हैं, किन्हीं के पास जैनों के शब्द हैं, किन्हीं के पास ईसाइयों के शब्द हैं। इसके अतिरिक्त हमारे पास संपत्ति क्या है? अगर हम भीतर खोजने जाएं तो शब्दों के अतिरिक्त हमारे पास क्या है? और शब्द का क्या मूल्य हो सकता है?

एक सम्राट के द्वार पर एक कवि ने एक दिन सुबह आकर सम्राट की प्रशंसा में कुछ गीत कहे, कुछ कविताए कहीं। फिर कवि तो रुकते नहीं शब्दों का महल बनाने में। वे तो कुशल होते हैं। उन्होंने, उस कवि ने, सम्राट को सूरज बना दिया, सारे जगत का प्रकाश बना दिया।

उस कवि ने सम्राट को जमीन से उठाकर आसमान पर बिठा दिया उसने अपनी कविता में जितनी प्रशंसा कर सकता था, की। सम्राट ने उससे कहा, धन्य हुआ तुम्हारे गीत सुनकर। बहुत प्रभावित हुआ। एक लाख स्वर्ण मुद्राएं कल तुम्हें भेंट कर दी जाएंगी। कवि तो दीवाना हो गया। सोचा भी न था कि एक लाख स्वर्ण मुद्राएं मिल जाएंगी। आनंद विभोर घर लौटा, रात भर सो नहीं सका। बार-बार खयाल आने लगा, एक लाख स्वर्ण मुद्राएं। क्या करूंगा। न मालूम कितनी योजनाएं बना ली। कवि था, शब्दों का मालिक था। बहुत शब्द जोड़ लिए। सारा भविष्य स्वर्णमय हो गया सारा भविष्य एक सपना हो गया। जीवन एक धन्यता मालूम होने लगी। सुबह जल्दी ही, सूरज अभी निकल ही नहीं पाया कि द्वार पर पहुँच गया। राजा ने सम्राट ने बिठाया और थोड़ी देर बाद पूछा, कैसे आए हैं? उस कवि ने पूछा, कहीं भूल तो नहीं गया सम्राट। पूछता है कैसे आए हैं, उसने कहा कि पूछते हैं कैसे आया हूं? रात भर नहीं सो सका, क्या पूछते हैं आप? कल कहा था आपने कि एक लाख स्वर्ण मुद्राएं भेंट करेंगे। सम्राट हंसने लगा, कहा, बड़े नासमझ हैं आप। आपने शब्दों से मुझे प्रसन्न किया था, मैंने भी शब्दों से आपको प्रसन्न किया था इसमें लेने-देने का कहां सवाल आता है? कैसी एक लाख स्वर्ण मुद्राएं? आपने कुछ शब्द कहे थे, कुछ शब्द मैंने कहे थे। शब्द के उत्तर में शब्द ही मिल सकते हैं। स्वर्ण मुद्राएं? कैसे? तब कवि को पता चला कि अपने शब्द में थोथे हैं। उनके भीतर कोई कटेंट नहीं हैं। शब्द अपने आपमें पानी पर खींची गयी लकीरों से ज्यादा नहीं हैं। लेकिन हमारे पास क्या है? शब्दों के अतिरिक्त कुछ और है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book