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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

मेरी दृष्टि में सत्य को किसने कैसा जाना और किसने क्या कहा, यह निर्णय करने की न तो कोई जरूरत है, न कोई उपयोगिता है, न कोई अर्थ है, जब कि हम स्वयं सत्य को जानने के हकदार और मालिक हो सकते हैं। जब कि मैं सीधा ही सत्य का साक्षात्कार कर सकता हूँ, जब कि मैं खुद ही वहाँ हो सकता हूँ जहाँ महावीर और बुद्ध थे। तो मैं इनकी क्या फिकर करूं कि कौन वहाँ था और उसने क्या कहा। यह तो तब करने की जरूरत थी, जब मैं यहाँ न पहुँच सकूँ। तो यह बात निर्णय करने की जरूरत थी, कि हम यह निर्णय करें कि उन्होंने क्या कहा?

लेकिन मेरी समझ में प्रत्येक व्यक्ति अधिकारी है, जन्म से अधिकारी है उस सबको पा लेने का जो कभी भी किसी व्यक्ति ने पाया हो। इसलिए कोई आवश्यकता नहीं है कि आप पीछे लौटकर फिकर करने जाएं। भीतर जाकर जानने की जरूरत है, पीछे लौटकर नहीं। पच्चीस सौ साल पीछे नहीं लौटना है, पच्चीस कदम अपने भीतर उतर लें तो सब जान लेंगे जो पच्चीस सौ साल पीछे उत्तर कर आप नहीं जान सकते। अगर आपने निर्णय भी कर लिया तो उसे क्या हल होता है।

उन मित्र ने यह भी पूछा है किसी और ने कि धर्मग्रंथों में क्या सब फिजूल बातें लिखी हैं।

यह मैंने कब कहा? यह मैंने कब कहा कि धर्मग्रंथों में सब फिजूल बातें लिखी हैं? लेकिन धर्मग्रंथों को जो अंधे की भाति पकड़ लेता है, उसका पकड़ा हुआ तब फिजूल होता है। वह उसके अंधेपन के कारण फिजूल होता है। सवाल यह नहीं है कि धर्मग्रंथों में क्या लिखा है और क्यों लिखा है। सवाल यह है कि आप अंधे होकर पकड़ते हैं या आँख खुली होकर जीवन को खोजते हैं। अगर आप अंधे होकर पकड़ते हैं तो जो भी पकड़ लेंगे वह फिजूल होगा। वह दो कौड़ी का होगा। यह प्रश्न नहीं है कि वहाँ जो लिखा है वह ठीक है या नहीं? ठीक का निर्णय कौन करेगा? अंधे आदमी बैठकर निर्णय करेंगे कि प्रकाश के संबंध में जो लिखा है वह ठीक है या नहीं, तो खूब निर्णय हो जाएगा उनसे फिर। सिर फुटौव्वल हो जाएगी, लकड़ियां चल जाएंगी, हत्याएं हो जाएंगी। अंधे क्या निर्णय करेंगे कि प्रकाश के संबंध में कहीं कोई कौन-सी बात सच है। कोई निर्णय उससे होने का नहीं है। कौन तय करेगा कि क्या ठीक है? आप ही तो तय होने का नहीं है। कौन तय करेगा कि क्या ठीक है? आप ही तो तय करेंगे न? अगर आप गीता पढ़कर भी निर्णय करेंगे कि यह बात ठीक है तो यह निर्णय कृष्ण का नहीं है, यह निर्णय आपका निर्णय है। और आपकी स्थिति क्या है? अगर आप जानते हों तो गीता से पूछने नहीं जाते। आप नहीं जानते हैं सो गीता से पूछने गए। और मैं पढ़कर आप जो निर्णय करेंगे वह निर्णय आपका ही है कि गीता का क्या अर्थ है।

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