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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

महावीर ने घर छोड़ा--हाँ वह बिलकुल सहज छूट रहा है। तपश्चर्या करनी नहीं है, केवल ज्ञान को जगाना है। जो जो व्यर्थ है वह छूटता चला जाएगा। और दूसरों को देखेगा कि आप तपश्चर्या कर रहे हैं और आपको दिखेगा कि आप निरंतर ज्यादा आनंद को उपलब्ध होते चले जा रहे हैं। दूसरों को दिखेगा, बडा कष्ट सह रहे हैं और आपको दिखेगा हम तो बड़े आनंद को उपलब्ध होते चले जा रहे हैं। धीरे-धीरे आपको दिखेगा, मैं तो आनंद को उपलब्ध हो रहा हूं, दूसरे लोग कष्ट भोग रहे हैं। और दूसरों को यही दिखेगा कि आप कष्ट उठा रहे हैं और वे आपके पैर छूने आएंगे और नमस्कार करने आएंगे कि आप बड़ा भारी कार्य कर रहे हैं। तपश्चर्या दूसरों को दिखाती है, स्वयं को केवल आनंद है। और अगर स्वयं को तपश्चर्या दिखती है तो अज्ञान है, और कुछ नहीं है। वह पागलपन कर रहा है और अगर उसको स्वयं को दिखता है कि मैं बड़ा तप कर रहा हूं और बड़ी तपश्चर्या और बड़ी कठिनाई तो वह बिलकुल पागल है, वह नाहक परेशान हो रहा है। और उससे केवल उसका दंभ विकसित होगा, आत्मज्ञान उपलब्ध नहीं होगा।

जो तपश्चर्या करता है यह दंभी है, वह अहंकारी है और वह अहंकार का पोषण करता है। जब वह सुनता है, उसने तीस उपवास किए और चारों तरफ लोग फूल मालाएं लिए खडे़ हैं। तो जो सुख मिल रहा है वह इन फूलमालाओं का और इन लोगों का आदर का और सम्मान का है, तपस्वी कहलाने का है। और जिसमें सच तपश्चर्या हुई हो उसे पता भी नहीं पड़ता है। आप उसका सम्मान करने जाएं तो उसे सिर्फ हैरानी भर होती है कि आपको क्या हो गया है। उसे तपश्चर्या का बोध नहीं होता है।

तो मेरी दृष्टि में तो एक ही तपश्चर्या है और वह तपश्चर्या यह है कि जागरूकता को पैदा करें, मूर्च्छा को तोड़ें, चित्त की विकार विकल्प की स्थिति को विसर्जित करें, निर्विकल्प समाधि को उत्पन्न करें। और उससे परिणाम में जो जो परिवर्तन होंगे वे दूसरों को दिखायी पड़ेंगे कि तपश्चर्या हो रही है। अब जैसे महावीर का उल्लेख है। महावीर को लोगों ने मारा, ठोंका, पीटा, उनको कष्ट दिए। हमको लगता है, यह आदमी कितना सहा है, कितना तपस्वी था। लोग मार रहे हैं और वह सह रहे हैं। हमको ऐसा लगता है क्योंकि महावीर की जगह हम अपने को रखकर सोचते हैं। अगर लोग हमको मार रहे हैं और हमको उन्हें न मारना पड़े तो कितना कष्ट होगा, कितनी तपश्चर्या होगी। और जहाँ तक महावीर का संबंध है, उन्हें केवल यही हैरानी हो रही होगी कि इन बिचारों को कैसी पीड़ा है कि ये मारने को उतारू हो गए हैं।

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