कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
उस दिन के बाद से तो ऐसा सिलसिला बना कि गुजरात, मध्य-प्रदेश और बिहार के तमाम काव्य-मंचों पर हम लोग साथ रहे। तमाम यात्रायें साथ-साथ कीं और एक-दूसरे को भली-भांति समझा-परखा। मुझे लगा कि अपनी रचनाओं में गहरी से गहरी बात भी अत्यंत सरल-ढंग से कहने वाला यह कवि अपने स्वभाव से भी सरल है।
'कवि होने के लिये आदमी होना पहली शर्त है' किसी कवि की यह पंक्ति अंसार के व्यक्तित्व का आकलन करने के लिये सटीक लगती है। तभी तो उनकी कविता किसी भी प्रकार की प्रतिबद्धता से मुक्त हैँ। उनका कवि केवल मानवता का पक्षधर है। इसी विशेषता ने उनकी कविता को व्यापक धरातल दिया है। वे लिखते हैं-
जिस गुलशन के फूल हैं, सबके नबी-रसूल।
मेरे मत में राम हैं, उसी चमन के फूल।।
उन्हें राम का लोक-मंगलकारी रूप भाया है। वे राम की विराटता और दीनबंधुता के गायक हैं
चाहे वो आशीष दें, चाहे मारें बाण।
रघुनन्दन के हाथ से, होता है कल्याण।।
जो विराट है वही सनातन सत्य है। जो सत्य है, वही शिव; कल्याणकारी और सुन्दर है। तभी तो राम का आशीष और विरोध दोनों ही कल्याणकारी हैं। मारीच-वध के समय तुलसी ने भी कहा है-
'निज पद दीन्ह असुर कँह, दीनबन्धु रघुराय'
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