कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
पहेली बूझते हैं
सूर्य से नाराज हो कर हम
अब अंधेरे से दिशायें पूछते हैं
बस्तियों में बदहवासी बो गये
अपने घर के सामने ही खो गये
दूसरों को एक करने के लिए
हम स्वयं ही एक से दो हो गये
फिर मिलाने के लिए दोनों सिरे
क्या बतायें किस तरह से जूझते हैं
भक्त का मंदिर से कुछ नाता नहीं
बे-वजह कोई कहीं जाता नहीं
आजकल परलोक का इस लोक में
एक भी असली बही खाता नहीं
मिल रही जिससे हमें अवमानना
घूम फिर कर हम उसी को पूजते हैं
कूद कर बैठे पराई नाव पर
जिन्दगी जब भी लगी है दाँव पर
हाथ में बैसाखियाँ थामे हुये
गर्व करते हैं पराये पाँव पर
हल कोई निकले तो आखिर किस तरह
हम पहेली से पहेली बूझते हैं
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