कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
आह न की
अनगिन जख्म मिले हैं अब तक
हमने लेकिन आह न की
बंदी रहे न जाने कब से
मौसम की जंजीरों में
देख रहे हैं हरित-क्रान्ति
पतझर की तस्वीरों में
तपती रेत तेज सूरज की
हमने तो परवाह न की
रहने को मजबूर हो गये
शहर बीच वीरानों में
सुनते आये जलाशयों के
किस्से रेगिस्तानों में
छाया मिले हमें मेघों की
हमने ऐसी चाह न की
रूखा-सूखा ही खाया है
बड़े-बड़े त्योहारों में
खाली जेब लिये घूमे हैं
सजे - धजे बाजारों में
जिस पर चलना पड़े उछल कर
हमने ऐसी राह न की
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