कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
इस गुलशन की बात अब, करना है बेकार।
माली के हाथों लुटा, फूलों का श्रृंगार।।121
ऐसा कोई आँकड़ा, खोज सके तो खोज।
जैसे गंगुवा बन गया, पल में राजा भोज।।122
जनता तेरा राज है, तेरी है सरकार।
चाहे जिसको छोड़ दे, चाहे जिसको मार।।123
जब उनको जाना पड़ा, जो पहने थे टोप।
टोपी वाले कौन फिर, बहुत बड़ी हैं तोप।।124
कैसे अपने देश का, होगा बेड़ा पार।
पत्थर की नौका यहाँ, काग़ज़ की पतवार।।125
हिंसा से आतंक का, करिये काम तमाम।
गाँधीगीरी से नहीं, चलने वाला काम।।126
दुनिया तो है 'क़म्बरी, बहुत बड़ा परिवार।
पर हमने ही खींच ली, आँगन में दीवार।।127
चाहे बंगलादेश हो, चाहे पाकिस्तान।
ये भी हिन्दुस्तान है, वो भी हिन्दुस्तान।।128
मानचित्र पर लाख तुम, खींचा करो लकीर।
जिसका हिन्दुस्तान है, उसका है कश्मीर।।129
चाँदी जैसा ताज है, सोने जैसे केश।
ऋतुयें अभिनन्दन करें, ऐसा मेरा देश।।130
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