कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
|
8 पाठकों को प्रिय 397 पाठक हैं |
मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
चलते-चलते 'क़म्बरी', हार गये हैं पाँव।
जीवन भर चलना पड़ा, चार कदम था गाँव।।91
सारी नगरी रौंदते, बुलडोजर के पाँव।
दाना-पानी उठ गया, लौट चलो अब गाँव।।92
बच्चे भूखे सो गये, माँ कितनी मजबूर।
हाई-टेक्निक दौर में, बेबस है मजदूर।।93
सूरज रहते 'क़म्बरी', कर लो पूरे काम।
वरना थोड़ी देर में, हो जायेगी शाम।।94
दोष दे रहा भाग्य को, करे न कोई काम।
फिर भी खुश है 'क़म्बरी', सबके दाता राम।।95
कृषि प्रधान है विश्व में, अपना हिन्दुस्तान।
फिर भी अपने देश में, भूखा मरे किसान।।96
चंदा-सूरज से लगें, गाँधी और सुभाष।
आजादी का देश में, लाये नया प्रकाश।।97
क्या खोकर पाया इसे, कितनी है अनमोल।
पूछो किसी शहीद से, आजादी का मोल।।98
तब के नेता देश को, करा गये आजाद।
अबके नेता देश की, हिला रहे बुनियाद।।99
नेता कुछ सुनते नहीं, लोग रहे चिल्लाय।
बीन बज रही सामने, भैंस खड़ी पगुराय।।100
|