कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
केवल गरजें ही नहीं, बरसें भी कुछ देर।
ऐसे भी बादल पवन, अब ले आओ घेर।।81
कोई कजरी गा रहा, कोई गाये फाग।
अपनी-अपनी ढपलियाँ, अपना-अपना राग।।82
पहले आप बुझाइये, अपने मन की आग।
फिर बस्ती में गाइये, मेघ मल्लारी राग।।83
उसके लिये न आम है, और न कोई खास।
हर प्यासे की 'क़म्बरी', नदी बुझाती प्यास।।84
नदिया है सौहार्द की, उसमें भी दीवार।
पंडित जी इस पार हैं, मुल्लाजी उस पार।।85
हमको ये सुविधा मिली, पार उतरने हेतु।
नदिया तो है आग की, और मोम का सेतु।। 86
अभी-अभी तो छाँव थी, अभी-अभी है धूप।
कैसा अपना गाँव है, पल-पल बदले रूप।।87
वही चार-सौ-बीसियाँ, वही सियासी दाँव।
शहरों जैसे हो गये, भोले-भाले गाँव।।88
माटी की ख़ुशबू कहाँ, कहाँ पेड़ की छाँव।
पत्थर के जंगल हुये, हरे-भरे से गाँव।।89
मरुथल से लगने लगे, अब तो अपने गाँव।
दूर तलक मिलती नहीं, वृक्षों वाली छाँव।।90
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