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अंतस का संगीत

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9545
आईएसबीएन :9781613015858

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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ


धर्म निरपेक्षता की सजीव मिसाल श्री क़म्बरी जहाँ राम और कृष्ण के दोहे गुनगुनाते हैं वहीं यह भी कहते हैं कि इस्लाम का पहला सबक यही है कि जर्रा-जर्रा उसी का है, उसी में है, उसी का था, न उसके बाद कोई है और न उसके पहले कोई था। जो अच्छा इन्सान है वही सच्चा मुसलमान है, अल्लाह की वही संतान है। उसे किसी भी नाम से पुकारो, फर्क नहीं पड़ता। अल्लाह, ईश्वर और गॉड अलग-अलग नाम होकर भी, एक है, 'जो सब का है'। इसी भाव की इबादत और अल्लाह के करम से 'अंतस का संगीत' अमल में आया है। उनके एक गीत में धर्म निरपेक्षता और देश भक्ति का जज्बा इस तरह प्रकट हुआ है कि वह रूह का संगीत बनकर मजहबी सरहदों को पार करता हुआ इंसानी दिलों को झंकृत कर देने की सामर्थ्य रखता है- देखें-
राम का घर, रहमान जहाँ है
गीता और कुर्आन जहाँ है
हर एक धर्म समान जहाँ है
ऐसी धरती कौन?
भारत-
जो है प्यारा देश हमारा

कृष्णा है रसखान को प्यारा
खुसरो को है राम दुलारा
गाये कबीरा का इक-तारा
ऐसी धरती कौन?
भारत-
जो है प्यारा देश हमारा

श्री क़म्बरी के गीतों की विलक्षणता, भावपरकता एवं शिल्प स्वयम् सिद्ध है, जब आप संकलन के अन्य गीतों को पढ़ेंगे तो निश्चय ही मेरे दृष्टिकोण से सहमत होंगे। भावों की परिकल्पना का सांगीतिक निर्वहन उनके गीतों का प्राण बिन्दु है जो श्रोताओं के अंतस में मौलिकता का सुरम्य परिवेश प्रस्तुत करता है। उनकी इस विशिष्टता ने उन्हें उस मुकाम पर पहुँचाया है जिसकी ख्वाहिश हर रचनाकार को होती है। अन्त में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि 'अंतस का संगीत' दोहों और गीतों के वहुमूल्य रत्नों का खजाना है, जिसके आकर्षण से पाठक प्रभावित हुये बिना नहीं रह सकता है। मेरी शुभकामनायें !

- अशोक मिश्र
117-के,48, आरएसपुरम,
काकादेव, कानपुर
मो.- 9936580686

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