कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
अमीर खुसरो ने भी अपनी एक मुकरी में राम के प्रति अपार श्रद्धा को दर्शाया है-
बरवत बे बरवत मोहे बाकी आस।
रात - दिन वह रहत मेरे पास।।
मेरे मन को करत सब काम।
ऐ सखि साजन, न सखि राम।।
अंसार क़म्बरी एक ओर जहाँ अमीर खुसरो की परम्परा का निर्वाह करते हैं, वहीं दूसरी ओर कृष्ण और राधा के सहज निश्छल प्रेम की बात कह कर वे रसखान कवि की परम्परा से जुड़े लगते हैं। कवि कृष्ण के प्रति राधा के प्रेम को आदर्श प्रेम मानता है। उसकी दृष्टि में कृष्ण के नाम के पहले राधा का नाम जुड़ने का यही रहस्य है। वह राधा के चितचोर की तलाश में चारों ओर भटक रहा है और भक्ति काल के किसी कृष्ण भक्त कवि की तरह कहता है -
कान्हा तेरे साथ ही, चला गया सुख-चैन।
राधा भी बेचैन है, गोकुल भी बेचैन।।
इस प्रकार अंसार क़म्बरी अमीर खुसरो, कुतुब अली कुतबन, मंझन, आलम, यारी साहब, रसखान, रहीम और नज़ीर की परम्परा के कवि हैं, जिन्होंने हिन्दी-साहित्य की अभिवृद्धि में अपनी-अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 'अंतस का संगीत' उसी श्रृंखला की एक कड़ी के रूप में है। अत: मेरा साधुवाद!
एल.आई.जी.-206,
रतनलाल नगर,
कानपुर
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