मूल्य रहित पुस्तकें >> अमेरिकी यायावर अमेरिकी यायावरयोगेश कुमार दानी
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उत्तर पूर्वी अमेरिका और कैनेडा की रोमांचक सड़क यात्रा की मनोहर कहानी
मैंने अपनी दृष्टि नेपथ्य से हटाकर कमरे की वस्तुओं से होते हुए एक दुबली-पतली
लड़की पर केंद्रित की। उसके हाव-भाव बता रहे थे कि वहाँ पर किसी को ढूँढ़ने की
कोशिश कर रही थी। मैं झिझका और इससे पहले कि उससे कुछ पूछता, वह भी झिझकती हुई
बोली, “क्या आप सुरेश हैं?” मैने तुरंत राहत-भरी साँस ली, और प्रतिउत्तर में
बोला, “हाँ, और आप मेरी एन?” उसने सहमति में सिर हिलाया। मैं सड़क की ओर वाली
कुर्सियों की ओर बढ़ा, पर फिर झिझक कर उससे पूछा, “आप कुछ लेना चाहती हैं?”
उसने इनकार में सिर हिलाया। जब मेरी एन ने “मैकडो” में मिलने के लिए कहा
था, तब मुझे लगा कि शायद वह भी वहीं खाना चाहती होगी। हो सकता है बात होने और
मिलने के बीच में उसका मन बदल गया हो। खैर मुझे क्या करना! सैंडविच तो
मुझे भी खाना था, परंतु उसकी कोई विशेष जल्दी नहीं थी। मैं उसके जाने के बाद
इतमीनान से खाना चाहता था। यदि बर्गर में साढ़े पाँच डालर खर्च करने ही थे, तो
उसका मजा भी क्यों न लिया जाये।
मेरी एन लगभग साढ़े पाँच फुट की दुबले-पतले शरीर की लड़की थी। उसके चेहरे पर
कुछ उत्सुकता और कुछ झिझक मिश्रित भाव थे। बाल लालिमा लिए थे और उसके यूरोपीय
आनुवांशिकता वाले चेहरे पर कुछ मुहाँसे और कुछ चकत्ते से थे। यहाँ की भाषा में
ऐसे चेहरे को “फ्रिकल्ड फेश” कहते हैं। गर्मियों के कारण उसने कैपरी शार्ट और
ऊपर एक होजरी का टाप पहना हुआ था। हम दोनों एक मेज के आमने-सामने पड़ी
कुर्सियों पर बैठ गये।
देखने में तो वह सामान्य लोगों जैसी ही दिख रही थी, उसके बाल हरे अथवा बैंगनी
रंग के नहीं थे, न ही उसके शरीर पर गोदने तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के छल्ले आदि
थे। कुल मिलाकर यात्रा में अपने साथी से जितनी उम्मीदें हो सकती थीं, उसके
हिसाब से वह ठीक-ही थी। मेरे लिए इतना ही काफी था कि मेरा सहयात्री ऊटपटाँग
आदतों वाला न हो, क्योंकि हम महज कुछ दिनों की यात्रा पर ही साथ होने वाले थे,
न कि जीवन पर्यंत के मित्र बनने वाले थे! अब मुझे तो आगे केवल यही जानना था कि
वह कैनेडा के क्यूबेक में कहाँ जाना चाहती है?
सबसे पहले तो मैंने उसे औपचारिक धन्यवाद दिया, तत्पश्चात् बातचीत आरंभ करने के
लिए, पहले अपना परिचय देते हुए उसे अपने बारे में यह बताया, “मैं इन्फार्मेशन
सिस्टम्स में मास्टर्स का कोर्स कर रहा हूँ, हो सकता है कि पीएचडी भी करूँ।
आजकल चूँकि अपनी थीसिस पर काम कर रहा हूँ, इसलिए थोड़ा समय मिल पा रहा है, इसी
विचार से जहाँ तक की दूरी कार की यात्रा से तय की सकती है, उन स्थानों का भ्रमण
करना चाहता हूँ।“ उसने भी जवाबी परिचय के रूप में मुझे अपने बारे में बताया,
“मैं मानव विज्ञान विभाग में स्नातकोत्तर कर रही हूँ।“
बातचीत को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से मैंने कहा, “मैं लम्बे समय से मौका ढूँढ़
रहा था कि आस-पास के स्थानों का भ्रमण कर सकूँ, परंतु आवश्यक पैसा और समय न
होने के कारण इसका मुहूर्त नहीं बन पा रहा था।“ मेरी बात सुनकर मेरी एन ने अपने
होंठों को हल्की मुस्कराहट में फैला कर मुझे यह इशारा किया कि वह इन दोनों
समस्याओं को बहुत अच्छी तरह जानती है। उसकी हल्की मुस्कराहट से प्रोत्साहित
होते हुए मैंने आगे बताया, “ मैं अकेले जा सकूँ, इतना पैसा तो अभी मैं यात्रा
में खर्च करने की इच्छा नहीं रखता, पर लगता है, समय निकला जा रहा है, क्योंकि
यदि एक बार कोई नौकरी पकड़ ली, तब संभवतः इस तरह घूमने के लिए एक साथ समय न मिल
पाये। इसीलिए मैं एक साथी को ढूँढ रहा था। इस प्रकार यात्रा का खर्च भी आधा हो
जाता और साथ भी हो जाता।“
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