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अमेरिकी यायावर

योगेश कुमार दानी

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9435
आईएसबीएन :9781613018972

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उत्तर पूर्वी अमेरिका और कैनेडा की रोमांचक सड़क यात्रा की मनोहर कहानी


मैंने मेरी एन से पूछा कि वह किस संग्रहालय में पहले जाना चाहेगी? प्राकृतिक इतिहास, कला अथवा अंतरिक्ष संग्रहालय? उसने कहा कि पहले कल वाले संग्रहालय में चलते हैं। हम सबसे पहले प्राकृतिक इतिहास के संग्रहालय (Museum of Natural History) में पहुँच गये। पिछले दिन हुई सुरक्षा जांच को ध्यान में रखते हुए इस बार मैने अपना लैपटाप भी कार में ही छोड़ दिया था। मेरे पास अब कुल सामान के नाम पर एक पानी की बोतल और अपना सेल फोन था। मेरी एन के पास अपना हाथ वाला बैग था जिसका निरीक्षण संग्रहालय के सुरक्षा कर्मियों ने खोल कर किया। मैं अपने हाथ की बोतल हिलाता हुआ शान से सीधा अंदर चला गया। अंदर जाकर हम सबसे पहले निचली मंजिल पर ही देखते रहे। घूम-घूम कर पढ़ते और संग्रहित वस्तुओं और चित्रों की फोटो लेते रहे। दक्षिणी अमेरिका की प्राचीन वस्तुओं को देखते समय मेरा ध्यान गया कि मेरी एन आस-पास कहीं नहीं थी। मैं जिस रास्ते से आ रहा था उस पर थोड़ी देर लौटकर देखा तो वह कहीं नहीं दिखाई दी। संभवतः वह आगे निकल गई थी। मैने एहतियातन अपने सेल फोन की बैटरी और सिगनल चेक कर लिया ताकि यदि वह कोई संदेश करना चाहे तो उसमें कोई समस्या न आये।  
मैं संग्रहालय की वस्तुओं में पुनः दिलचस्पी लेने लगा। कुछ देर पश्चात् वह मुझे योरोप की पुरानी वस्तुओं वाले कमरे में दिखी। मुझे यह देखकर शांति हुई कि वह बड़ी तल्लीनता से देख रही थी, अन्यथा मुझे लगने लगा था कि मैं उसे अपनी पसन्द के स्थानों पर ले जा रहा हूँ। इस संग्रहालय की पुरानी वस्तुओं में मग्न देखकर मेरा अपराध-बोध कुछ कम हुआ। इस बीच बिना भूले हर बार दो घंटे पूरे होने से पहले ही मुझे पार्किंग के सिक्के मीटर में फिर से डालने जाना पड़ा। अब तक हम लोगों को लगभग 3-4 घंटे हो गये थे और इस बार जब मुझे वह दिखी तो मैंने उससे पूछा, “लंच के लिए आप क्या करना चाहती हैँ?” इसके अतिरिक्त मुझे यहाँ की झलक मिल गई थी और मैं अगले संग्रहालयों को देखना चाहता था। मेरा मन अब अंतरिक्ष संग्रहालय में रखी हुई सामग्री देखने के लिए उत्सुक था। मैंने कहा, “मैं अंतरिक्ष संग्रहालय देखना चाहता हूँ, आप को भी देखना है?” वह कुछ असमंजस में दिखी तो मैंने उसके सामने विकल्प रखे। “आप मेरे साथ अंतरिक्ष संग्रहालय चल सकती हैं, आप किसी और संग्रहालय में जा सकती हैं, लेकिन यदि आपको अभी इसी संग्रहालय में वस्तुएँ देखनी हैं तो आप यहाँ भी रह सकती हैं।“ वह बोली, “मैं अभी कुछ समय यहीं बिताना चाहती हूँ।“ समझौता यह हुआ कि भोजन करके हम दोनों अपनी पसंद के संग्रहालयों में जायें। भोजन के लिए मेरा सुझाव यही था कि हम इसी म्यजियम के कैफेटेरिया में जो भी भोजन दिखे वही फटाफट खा लें। मेरी एन ने कंधे उचकाए और बोली, “ठीक है ऐसा ही कर लेते हैं।“
मैनें पुनः कहा, “अगर आपको अभी भूख न लगी हो तो बाद में भी खा सकते हैं।” वह बोली, “हाँ, यह ठीक है, मैं थोड़ी देर में ही खाना चाहूँगी।” मुझे कुछ भूख लगने लगी थी, इसलिए मैंने कहा, “ऐसा क्यों न करें, मैं अंतरिक्ष म्यूजियम जाता हूँ, रास्ते में या फिर वहीं कुछ खा लूँगा, आप भी यहीं खा लीजिएगा।” उसने सिर हिलाया। मैं बोला, “जब आप यहाँ से निकलें तब मुझे टेक्सट कर दीजिएगा, मुझे कार की पार्किंग के कारण बार-बार समय देखना ही पड़ता है, मैं आपके टेक्सट का भी ध्यान रखूँगा।“

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मनोरंजक कहानी। पढ़ने में मजा आया

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