नई पुस्तकें >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
ईश्वरदास ने फिर कहा– ‘‘बाई जी, आपने सुना होगा कि आपके पुरखों में एक रावत दवाजी थे। वह मुसलमानों से लड़ाई में काम आए थे। उनकी रानी ने चारण होपां जी से कहा कि बाबा जी, अगर रावत जी का सिर ला दो तो मैं सती हो जाऊं। होपां जी लड़ाई के मैदान में गए मगर कटे हुए सिरों के ढेर में रावत का सिर पहचाना न जाता था। उस वक्त होपां जी ने बड़ी सूझबूझ को काम में लाकर रावल जी की तारीफ करना शुरू की और उसको सुनते ही रावल जी का सिर हंस पड़ा। होपां जी उसे पहचान कर रानी के पास लाया। उसके बारे में एक दोहा मशहूर है–
बरदातां सर बोल्यौ गीता दोहां कल
यानी होपां चारण ने अपने मालिक दवाजी की सेवा की थी। इसलिए दवाजी का सर अपने वफादर नौकर की जबान से अपनी तारीफ सुनकर हंस पड़ा। यह बात गीतों और दोहों में मशहूर है। सो बाई जी, तुम भी उसी रावल दवाजी के घराने की हो। वह मरकर बोला, तुम जीती भी नहीं बोलती, क्या तुम्हारी रगों में बुजुर्गों का खून नहीं दौड़ता?
उमादे– (जोश मे आकर) ‘‘बाबा जी, मैं भी यही देखना चाहती थी कि देखू तुम्हारी जबान में कितनी ताकत है। कहो, क्या कहते हो और क्यों आए?’’
ईश्वरदास– ‘‘तुम्हारी सौतें कहती हैं कि वह अगरचे चंद्रवंश में पैदा हुईं, खुद भी चांद की तरह रोशन हैं, मगर चेहरे पर मैल अभी तक बाकी है। मैं यही पूछने आया हूं कि वह मैल कैसा है और क्यों बाकी है?’’
उमादे– ‘‘उन्हीं से क्यों न पूछ लिया?’’
ईश्वरदास– ‘‘वह तो कुछ साफ-साफ नहीं बतलातीं।’’
उमादे– ‘‘मैं साफ-साफ बता दूं?’’
ईश्वरदास– ‘‘इससे बढ़कर क्या होगा।’’
उमादे– ‘‘मुझमें यही मैल है मैं चाहती हूं कि राव जी बीवी और बांदी की पहचान रखें।’’
ईश्वरदास– ‘‘अब ऐसा ही होगा। रानी रानी रहेगी और बांदी बांदी।’’
उमादे– ‘‘तुम इसका पक्का कौल दे सकते हो?’’
उमादे– ‘‘अच्छा, हाथ बढ़ाओ।’’
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